जल निकास क्या है इसकी परिभाषा, लाभ एवं जल निकास की विधियां व प्रणालियां

कृषिकृत भूमि में अत्याधिक सिंचाई, वर्षा या बाढ़ से जमा होने वाले पानी को कृत्रिम रूप से बाहर निकालने की क्रिया जल निकास (drainage in hindi) कहलाती है ।

कृषिकृत भूमि से खराब जल को जिन तरीकों से बाहर निकलना जाता है उन्हें जल निकास की विधियां या प्रणालियां (methods of drainage in hindi) कहा जाता है ।


जल निकास क्या है drainage in hindi

सामान्यतः वर्षा एवं सिंचाई के साधनों के माध्यम से भूमि पर एकत्रित फालतू पानी को निकालने की प्रक्रिया को जल निकास (drainage in hindi) कहते हैं ।

खराब जल-निकास के कारण भूमि में हानिकारक लवणों का संग्रह, जल स्तर ऊँचा होना आदि समस्यायें पैदा हो जाती हैं ।


जल निकास की परिभाषा | defination of drainage in hindi

जल निकास की परीभाषा - "जल निकास फसलों की अनुकूल वृद्धि एवं विकास के लिये भूमि में उचित लवण एवं सन्तुलन बनाये रखने के लिये अतिरिक्त पानी को निकालने सम्बन्धी प्रक्रिया है ।"

"Drainage is the removal of excess water to ensure a fevaourable salt balance in the soil and water table elevation optimum for crop growth and development."

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जल निकास क्या है जल निकास की विधियां एवं प्रणालियां लिखिए (Methods of drainage in hindi)

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मोल जल निकास किसे कहते है? What is mole drainage in hindi

भूमि सतह पर इच्छित गहराई में अतिरिक्त जल को निकालने के लिए बेलनाकार नालियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं ।

इन नालियों द्वारा होने वाले जल निकास को मोल जल निकास (mole drainage in hindi) कहते हैं ।


जल निकास की विधियां एवं प्रणालियां | methods of drainage in hindi

जल निकास की विधियाँ (methods of drainage in hindi) - खेत में पानी की मात्रा खेत की स्थिति तथा अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुये जल निकास के लिये निम्नलिखित विधियाँ प्रयोग में लाई जाती है ।


जल निकास की प्रमुख विधियां -

  • पृष्ठीय जल निकास ( Surface drainage )
  • भूमिगत या अधोपृष्ठीय जल निकास ( Sub Surface drainage )


1. पृष्ठीय जल निकास ( Surface drainage ) -

यह विधि जल निकास की एक सस्ती विधि है । इस विधि में क्षेत्रीय नालियों का प्रयोग किया जाता है । ये नालियाँ खुली होती हैं जिनमें होकर अतिरिक्त एकत्रित जल सुरक्षित तरीके से निकल जाता है ।

व्यक्तिगत या छोटे फार्मों पर इन नालियों का आकार छोटा रखा जाता है जबकि बड़े फार्मों पर नालियों की संख्या अधिक एवं आकार भी बड़ा होता है । नालियाँ बनाते समय मृदा की किस्म, मृदा धरातल का पार्श्व ढाल, एवं वर्षा की मात्रा का ध्यान रखना चाहिये ।

हल्की भूमियों में छोटी - छोटी तथा कम गहरी नालियाँ बनाई जाती हैं ताकि कटाव न हो सके जबकि अधिक वर्षा वाले स्थानों पर अपेक्षाकृत बड़ी नालियों की आवश्यकता होती है ।

खुली नालियों में हर वर्ष सफाई करनी पड़ती है तथा इनमें प्रयुक्त क्षेत्र फसलोत्पादन के काम में नहीं लाया जा सकता है इनमें उसे खरपतवारों के बीज दूसरी जगह पहुँचकर हानि पहुंचाते हैं ।


इस विधि में तीन प्रकार की नालियाँ बनाते हैं -

  • स्थायी नालियाँ ( Permanent drains )
  • अस्थायी नालियाँ ( Temporary drains )
  • कट आउट नालियाँ ( Cut - out drains )


पृष्ठीय जल निकास की प्रणालियां ( systems of Surface Drainage ) -

पृष्ठीय जल निकास हेतु किसी पद्धति का चयन भू - आकृति एवं फसल के स्वभाव पर निर्भर करता है ।


पृष्ठीय जल निकास की निम्नलिखित पद्धतियाँ प्रचलित हैं -

  • यादृद्धिक क्षेत्र खाई ( Random field ditches )
  • भूमि को सपाट बनाना ( Land Smoolling )
  • क्यारी निर्माण ( Bedding )
  • ढाल के विपरीत खाई खोदना ( Cross Slope System )
  • समानान्तर क्षेत्र खाई ( Parallel field ditches )


( i ) यादृद्दिक क्षेत्र खाई ( Random field ditches ) -

इस प्रकार की नालियाँ उथली बनाते हैं तथा इन्हें खेत के नीचे के स्थान या गड्ढे से प्रारम्भ करके इनको प्राकृतिक जल प्रवाह मार्ग से जोड़ दिया जाता है अथवा पानी को प्रक्षेत्र में कहीं दूसरे स्थान पर फैला दिया जाता है यह विधि ऊंची - नीची भूमियों से पानी निकालने के लिये उपयुक्त है ।


( ii ) भूमि को सपाट बनाना ( Land Smoothing ) -

इस विधि में ऊँचे स्थान से मिट्टी काटकर नीचे के स्थानों में भर दी जाती है इस प्रकार के खेत का ढाल ' समान बनाया जाता है ऐसे खेतों के नीचे वाले सिरे पर पानी को एकत्रित करके बहाने के लिये खेत में खाइयाँ (ditches) खोद दी जाती हैं इनका सम्बन्ध प्राकृतिक जल निकास मार्ग से कर दिया जाता है यह ऊंची - नीची भूमियों के लिये उपयुक्त है ।


( iii ) क्यारी बनाना ( Bedding ) -

इस विधि का प्रयोग कम ढलुवाँ एवं चपटी भूमियों से जल निकासी के लिये किया जाता है । इस विधि में खेत में ऊँचाई से शुरू करके नीचे की तरफ ढाल के समानान्तर पर्याप्त चौड़ाई की फॅड निकाल देते हैं दो कँडों के बीच काफी जगह छोड़ देते हैं इसे इस प्रकार बनाते हैं ताकि अतिरिक्त पानी आसानी से कँडों में जमा हो जाये खेत के नीचे वाले सिरे पर कूड के पानी को इकट्ठा करने के उद्देश्य से खोदी गई खाई से सम्बद्ध करके इसे प्राकृतिक जल निकास मार्ग से मिला देते हैं ।


( iv ) समानान्तर क्षेत्र खाई ( Parallel field ditches ) -

यह विधि भी क्यारी विधि की तरह है इस विधि में फॅड के स्थान पर कूड की अपेक्षा अधिक गहरी और अधिक संग्रह क्षमतायुक्त खाइयाँ खोदी जाती हैं दो खाइयों की आपसी दूरी समान रखी जाती है । यह भूमि ऊँची - नीची एवं चपटी भूमियों के लिये लाभदायक है ।


( v ) ढाल के विरूद्ध खाई खोदना ( Cross Slope System ) -

यह विधि अधिक असमान ऊंची - नीची भूमियों के लिये प्रयोग की जाती है इस विधि में ढाल के विपरीत सपाट ढाल पर खाइयाँ खोदी जाती हैं दो खाईयों के बीच में जो खाली स्थान होता है उस पर उथली मेंड बना दी जाती है इन दोनों खाईयों के पानी को एक गहरी खाई से जोड़कर प्राकृतिक जल प्रवाह मार्ग में मिला देते हैं ।


2. भूमिगत या अधोपृष्ठीय जल निकास ( Sub Surface Drainage )

भूमिगत जल निकास प्रणाली का मुख्य उद्देश्य जल स्तर के पौधों को जड़ क्षेत्र से नीचे ले जाना होता है । इसके लिये विभिन्न पद्धतियाँ खुली नालियां, टाइल निर्मित नालियाँ, मोल जल निकास नालियाँ , छिद्रित पाइप ड्रेन आदि प्रचलित हैं ।

इस विधि में कृषि योग्य भूमि नष्ट नहीं हो पाती तथा नालियों से कृषि कार्य में किसी प्रकार की बाधा नहीं पहुंचती है ।


अवपृष्ठ जल निकास की निम्नलिखित विधियाँ प्रचलित है -

  • खपरैल जल निकास ( Tile drainage )
  • मोल जल निकास ( Mole drainage )
  • छिद्र युक्त पाइप जल निकास ( Perforted pipe drainage )
  • पत्थर युक्त जल निकास ( Stone drainage )


( i ) खपरैल जल निकास ( Tile drainage ) -

इस विधि में पकी हुई मिट्टी या कंक्रीट की बेलनार खोखली खरपैल प्रयोग की जाती है । इन खपरैलों की अवमृदा में खोदी गई नालियों में मिट्टी से दवा दिया जाता है ।


( ii ) मोल जल निकास ( Mole drainage )  -

इस विधि में मिट्टी के अन्दर एक विशेष प्रकार के बने मोल हल (mol plough) द्वारा मोल नाली पृष्ठ मृदा को बिना अनावृत किये ही बना दी जाती है । यह विधि प्राय: भारी भूमियों में प्रयोग की जात है ।


( iii ) छिद्र युक्त पाइप जल निकास ( Perforted pipe drainage ) -

विधि इस विधि में छिद्र युक्त धातु (लोह अथवा प्लास्टिक) के बने पाइपों को भूमि के अन्दर खोदी गई नालियों में विछा दिया जाता है ।


( iv ) पत्थर युक्त जल निकास ( Stone drainage ) -

इस विधि में अवमृदा में बनी नालियों में पत्थरों का प्रयोग किया जाता है । इन नालियों में प्रायः शीघ्र ही मिट्टी भर जाती है । परिणामस्वरूप इनकी सफाई मुश्किल हो जाती है ।

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भूमिगत या अधोपृष्ठीय जल निकास के लाभ | benefits of drainage in hindi


जल निकास के प्रमुख निम्नलिखित लाभ होते हैं -

  • पौधों के जड़ क्षेत्र में वायु संचार में सन्तोषजनक सुधार होता है ।
  • मृदा जल दशाओं में सुधार होता है ।
  • भूमि की जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है ।
  • पौधों के जड़ क्षेत्र में वृद्धि के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ विकसित होती है ।
  • खेत की तैयारी के लिये पर्याप्त समय मिल जाता है ।
  • घुलनशील लवणों की अतिरिक्त मात्रा को नीचे की तहों में निक्षालन द्वारा बहाया जाता है ।


सतही जल निकास तथा भूमिगत जल निकास में अन्तर | difference between surface and underground drainage in hindi


सतही का निकास ( Surface Drainage ) -

  1. इसमें भूमि की ऊपरी सतह से अत्याधिक वर्षा या सिंचाई जल को बाहर निकाला जाता है ।
  2. सतही जल निकास की विधियाँ समतलीकरण, छोटी क्यारियों का निर्माण व खुली नालियाँ आदि है ।
  3. यह एक आसान व सस्ती विधि है ।
  4. इस विधि में नालियाँ आदि बनाने में बहुत सारा क्षेत्र बेकार चला जाता है ।


भूमिगत जल निकास ( Underground Drainage ) -

  1. इस विधि में पौधों के जड क्षेत्र से आवश्यकता से अधिक जल को बाहर निकाला जाता है ।
  2. भूमिगत जल निकास में पाइपों द्वारा व मोल विधि से जल निकास किया जाता है ।
  3. यह एक महंगी विधि है ।
  4. इसमें नालियाँ भूमिगत होने के कारण ऐसा नहीं होता ।


जल निकास की प्रणालियां | drainage systems in hindi


जल निकास की प्रमुख प्रणालियां निम्नलिखित है -

  • प्राकृतिक विधि ( Natural method )
  • हैरिग बोन विधि ( Harring bone method )
  • गिरीडिरोन विधि ( Giridiron method )

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जल निकास क्या है जल निकास की विधियां एवं प्रणालियां लिखिए (methods of drainage in hindi)

जल निकास की प्रमुख प्रणालियां 


1. प्राकृतिक विधि ( Natural method ) -

इस विधि में अतिरिक्त पानी स्वत: ढाल की दिशा में बहंता जाता है और अन्त में यह स्थायी स्रोत जैसे - नहर, नाले, तालाब इत्यादि में पहुंच जाता है ।


2. हैरिग बोन विधि ( Harring bone method ) -

इस विधि में खेत के बीच में एक मुख्य नाली होती है । इस मुख्य नाली में अन्य सहायक नालियाँ आकर मिलती है । खेत से बाहर अतिरिकत जल मुख्य नाली से ही निकलता है ।


3. गिरीडिरोन विधि ( Giridiron method ) -

इस विधि के अन्तर्गत खेत के एक किनारे पर मुख्य नाली होती है । इस मुख्य नाली में पूरे खेत में आकर सहायक नालियाँ मिल जाती है और इस प्रकार फालतू पानी बाहर निकल जाता है ।


जल निकास गुणांक किसे कहते है | drainage coefficient in hindi

किसी निश्चित क्षेत्रफल से 24 घंटों में निकाले गये जल की मात्रा जल निकास गुणांक कहलाती है ।

"The amount of water that runs from a given area within 24 hours is called drainage coefficient."

किसी भूमि से बहने वाले जल की दर को भूमि की पारगम्यता, जल स्तर की गहराई, जल निकास नाली की गहराई, जल निकास नालियों के बीच की क्षैतिज दूरी, नालियों का प्रकार, जल निकास नालियों का ढाल व व्यास और अपसरण (seepage) आदि कारक प्रभावित करते हैं ।

जल निकास गुणांक को निम्न सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है -

जल निकास गुणांक = 24 घंटों में निकाले गये जल की मात्रा (घन मी. में)/क्षेत्रफल में वर्ग मीटरों की संख्या ।

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