मृदा कणाकार/मृदा गठन क्या होता हैं । soil texture in hindi

मृदा के कण विभिन्न आकार के होते है इन कणों के सापेक्षिक आकार को ही मृदा कणाकार या मृदा गठन (soil texture in hindi) कहा जाता है ।

मृदा के इन कणों को क्ले, सिल्ट और बालु में विभाजित किया हैं ।

मृदा कणाकार/मृदा गठन का क्या अर्थ है | meaning of soil texture in hindi

मृदा गठन का अर्थ उसमे क्ले, सिल्ट और बालु की सापेक्ष प्रतिशत मात्रा से होता हैं ।

किसी मिट्टी में उपस्थित इन तीन मृदा वर्ग कणों बालू, सिल्ट और क्ले की सापेक्ष प्रतिशत मात्रा के हिसाब से ही मिट्टी का नामकरण करते हैं ।

मृदा कणों का आकार निम्न प्रकार होता है -

  • मोटी बालू = 2.0-0.20mm से अधिक
  • महीन बालू = 0.20-0.02mm से कम
  • सिल्ट = 0.02-0.002mm से कम
  • क्ले (चिकनी मिट्टी) = 0.002mm से कम

बालू, सिल्ट और क्ले के अनुपात के आधार पर ही मृदायें विभिन्न कणाकार वर्गी बलुई, वलुई दोमट, दोमट, सिल्ट दोमट, चिकनी दोमट, चिकनी मृदा आदि में वर्गीकृत की जाती हैं ।

मृदा कणाकार/मृदा गठन की परिभाषा | definition of soil texture in hindi

"मृदा के खनिज कण विभिन्न आकार के होते हैं । मृदा के विभिन्न मृदा वर्ग कणों (soil separates) के आपेक्षिक आकार को मृदा कणाकार (soil texture in hindi) कहते हैं ।"

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मृदा कणाकार/मृदा गठन क्या होता हैं । soil texture in hindi

मृदा कणाकार/मृदा गठन क्या होता हैं? | soil texture in hindi

कणों के व्यास की असमानता अर्थात् कणाकार की भिन्नता के आधार पर मृदा में उपस्थित बालू, सिल्ट तथा क्ले आदि अनेक प्रकार के रूप धारण कर लेती है । मृदा में विभिन्न मृदा वर्ग के कणों के तुलनात्मक अनुपात को मृदा कणाकार (soil texture in hindi) कहते हैं ।

मोहर (Mohar) वैज्ञानिक ने कणाकार के आधार पर मृदा को निम्न दस भागों में वर्गीकृत किया है -

  • बहुत मोटी बालू = 2.0-1.0 मिलीमीटर
  • मोटी बालू = 1.0-0.5 मिलीमीटर
  • मध्यम बालू = 0.5-0.2 मिलीमीटर
  • महीन बालू = 0.2-0.1 मिलीमीटर
  • अति महीन बालू = 0.1-0.05 मिलीमीटर
  • मोटी स्लिट = 0.05-0.02 मिलीमीटर
  • सिल्ट = 0.02-0.005 मिलीमीटर
  • महीन सिल्ट = 0.005-0.002 मिलीमीटर
  • क्ले = 0.002-0.0005 मिलीमीटर
  • कोलाॅइडी क्ले = 0.0005 मिलीमीटर


मृदा वर्ग कणों की भौतिक प्रकृति क्या है?


  • मृदा वर्ग कणों की भौतिक प्रकृति - मृदा में बालू, सिल्ट तथा क्ले के विभिन्न प्रकार के कण होते हैं । मोटे (coarse) वर्ग कण के अन्तर्गत पत्थर, कंकड़ तथा बालू आते हैं । कंकड़ तथा बालू के कणों का आकार 2 मिलीमीटर से अधिक होती है । ये कण प्रायः गोल, चपटे या अनियमित कोणीय होते हैं ।
  • बालू के कणों का आकार (व्यास) 0.05-1 मिमी० तक होता है । बालू के कण आकार में स्थूल, आँख से दिखाई देने वाले और स्पर्श में किरकिरे होते हैं । रेतीली मृदा भुरभुरी होती है । इनमें क्वार्ट्ज (SiO2) मुख्य खनिज होता है । बालू के कणों के बीच बड़े आकार के रन्ध्र (pores) होते हैं जिनमें होकर जल शीघ्र नीचे चला जाता है । फलत: बालू की जलधारण क्षमता अत्यन्त कम होती है ।
  • स्लिट के कणों का आकार 0.002 से 0.02 मिमी० तक होता है । इसके कणों का आकार भी अनियमित होता है । सिल्ट में वायु संचार सुचारू रूप से होता है । इसमें केशीय रन्ध्र पर्याप्त होते हैं । जिससे इसकी जल धारण क्षमता पौधों की वृद्धि के लिए उपयुक्त होती है । सिल्ट में कार्बनिक पदार्थों तथा क्ले की उचित मात्रा होने पर मृदा की बनावट अत्युत्तम होती है और मृदा उर्वरता अधिक होती है । सिल्ट के विभिन्न भौतिक गुण बालू तथा क्ले के बीच होते हैं ।
  • क्ले के कणों का आकार 0.002 मिमी० से कम होता है । क्ले के कण जलशोषण करके फूल जाते हैं और सूखने पर सिकुड़ जाते हैं । पुनः जल मिलाने पर यह फूल जाती है और ऊष्मा निकलती है जिसे क्लेदन ऊष्मा (heat of wetting) कहते हैं । क्ले के कणों पर ऋणात्मक आवेश होता है और ये कोलॉइडी प्रकृति के होते हैं ।


मृदा कणाकार का क्या महत्व है | impotance of soil texture in hindi


मृदा कणाकार का कृषि में महत्त्व -

  • कणाकार में भिन्नता के आधार पर मृदा को विभिन्न मृदा कणों में विभाजित किया जाता है ।
  • मृदा कणाकार से मृदा की उर्वरता (fertility) स्थिर रहती है । यह मृदा को फसल के पोषक देने में सहयोग देता है ।
  • जिस मृदा के कणाकार में मिट्टी के कण छोटे होते हैं वह मुलायम और भुरभुरी होती है और उत्तम मृदा समझी जाती है । जिस मृदा के कण बड़े या कठोर होते हैं वह कृषि के लिए उपयुक्त नहीं होती ।
  • कणों के आकार का प्रभाव मृदा के अन्य भौतिक गुणों पर भी पड़ता है । उदाहरणार्थ – बड़े आकार के कणों वाली मृदा में कणान्तरिक छिद्र (porespaces) बड़े होते हैं । ऐसे मृदा में जल तीव्रता से नीचे की ओर जाता है जिससे मृदा की जल शोषण शक्ति कम रहती है । इस अवस्था में मृदा में नमी का सदैव अभाव रहता है । फलतः ऐसी मृदा की उर्वरा शक्ति बहुत कम हो जाती है ।
  • उचित कणाकार होने से मृदा में रन्ध्रों की संख्या अधिक होती है । इससे मृदा में नमी पर्याप्त मात्रा में विद्यमान रहती है और वायु संचार उपयुक्त बना रहता है । ऐसी मृदा कृषि के लिए उपयुक्त होती है ।


मृदा कणाकार निर्धारण करने की विधि -

मृदा कणाकार वर्ग निर्धारण करने की प्रयोगशाला विधि, यान्त्रिक विश्लेषण ( Mechanical Analysis ) पर आधारित है । इसके अनुसार इन विश्लेषणों और मृदा वर्ग के नाम से सम्बन्ध त्रिभुजाकार चित्र द्वारा प्रदर्शित करते हैं ।

इस त्रिभुजाकार चित्र का बायाँ कोण 100% बालू, दाहिना कोण 100% सिल्ट तथा ऊपर का कोण 100% क्ले प्रकट करते हैं । इस चित्र में बालू, सिल्ट तथा क्ले प्रतिशतता का योग 100 होता है । इसकी सहायता से मृदा वर्ग (soil class) का निर्धारण किया जाता है । जिस मृदा का वर्ग ज्ञात करना हो उसमें विद्यमान बालू, सिल्ट तथा क्ले की प्रतिशत मात्राएँ चित्र में बालू, सिल्ट तथा क्ले की रेखाओं पर क्रमानुसार अंकित करते हैं ।

इन अंकित बिन्दुओं से अन्दर की ओर समानान्तर रेखाएँ इस प्रकार खींचते हैं कि क्ले रेखा पर अंकित बिन्दु से खींची जाने वाली रेखा, बालू रेखा के समानान्तर हो । बालू रेखा पर अंकित बिन्दु से खींची जाने वाली रेखा, सिल्ट रेखा के समानान्त हो और सिल्ट रेखा पर अंकित बिन्दु से खींची जाने वाली रेखा क्ले रेखा के समानान्तर हो । चित्र के जिस भाग में ये तीनों रेखाएँ परस्पर मिलती हैं वही वर्ग का नाम होता है ।

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