सामूहिक खेती किसे कहते है अर्थ, परिभाषा एवं इसकी प्रमुख प्रणालियां

कृषि की वह प्रणाली जिसमें कई किसान परिवार के सदस्य मिल-जुलकर खेती या खेती संबंधित उद्योग व्यवसाय करते है उसे सामूहिक खेती/सामूहिक कृषि (collective farming in hindi) कहा जाता है ।

सामूहिक खेती किसे कहते है | collective farming in hindi

सामूहिक खेती (collective farming in hindi) प्रणाली के अन्तर्गत - कृषि जोतों का एकत्रीकरण कर दिया जाता है । भूमि एवं कृषि संसाधनों का स्वामित्व सम्पूर्ण समाज में निहित होता है । इस प्रबन्ध समिति के निर्देशन में सदस्य मिल - जुलकर फार्म पर कार्य करते हैं । सदस्यों को श्रमिक वर्ग में बाँट दिया जाता है ।

प्रत्येक वर्ग का नेता चुना लिया जाता है । श्रमिकों द्वारा किए गए काम का निरीक्षण वर्ग का नेता करता है । श्रमिकों को काम के दिन की इकाइयों के अनुसार पारिश्रमिक मिलता है । 

फार्म सम्बन्धी प्रत्येक कार्य के लिए प्रतिदिन के काम का एक निश्चित कोटा तय कर दिया जाता है और इसी कोटे के अनुसार कार्य - दिन की इकाइयों का निर्धारण काम की मात्रा तथा गुण के आधार पर होता है ।

सामूहिक खेती (collective farming in hindi) सोवियत रूस एवं अन्य साम्यवादी देशों में की जाती है ।

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सामूहिक खेती किसे कहते है अर्थ, परिभाषा एवं इसकी प्रणालियां
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सामूहिक खेती/सामूहिक कृषि की प्रणालियां | systems of collective farming in hindi


सामूहिक खेती की प्रमुख प्रणालियां -

  • टोज ( Toz ) 
  • खौलखोज ( Kholkhoz )
  • कोम्यून ( Communes )


सामूहिक खेती की प्रणाली के तीन मुख्य उप-स्वरूप है -

1. टोज ( Toz ) -

इस तरह की खेती में सदस्यगण कुछ कार्यों को आपस में मिलकर करते हैं, जैसे - बीज की बुआई, खेती की जुताई और फसलों की कटाई इत्यादि, जोत सबकी अलग - अलग रहती है तथा लाभ का वितरण भूमि के आधार पर किया जाता है ।


2. खौलखोज ( Kholkhoz ) -

इसमें पैदावार के सभी संसाधनों जैसे भूमि, श्रम, मशीन, औजार, पशु व फार्म की इमारतों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाता है । किन्तु साथ ही सदस्यों को अपने निजी बगीचे, सब्जी के लिए भूमि, मकान व मुर्गी आदि रखने को भी छूट रहती है । फार्म को जितनी पूँजी की, जैसे घोड़ों, गायों, हलों, व दूसरे औजारों के रूप में आवश्यकता पड़ती है, वे सब सदस्य स्वयं ही एकत्र करते हैं, राज्य केवल मशीन और ऋण के रूप में सहायता देता है ।


3. कोम्यून ( Communes ) -

इस प्रकार की खेती में उत्पादन का ही नहीं वरन् वितरण का भी राष्ट्रीयकरण कर दिया जाता है । कोम्यून के सदस्य अपनी भूमि व सम्पत्ति को एक जगह मिला लेते हैं । लाभ का बँटवारा काम की मात्रा पर नहीं वरन् सदस्यों की आवश्यकतानुसार किया जाता है ।

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