मृदा संरक्षण किसे कहते हैं (soil conservation in hindi) - अर्थ, परिभाषा एवं मृदा संरक्षण की विधियां

मृदा संरक्षण (soil conservation in hindi) विषय है जिसके अंतर्गत मृदा का उपयोग उसकी प्रयोग शक्यता के अनुसार किया जाता है ।

भूमि का ऐसा नियोजन जिससे मृदा ह्रास न्यूनतम अथवा बिल्कुल ही ना हो मृदा संरक्षण कहलाता है ।

मृदा संरक्षण का अर्थ | soil conservation meaning in hindi

इस प्रकार मृदा संरक्षण एक व्यापक शब्द है, जिसका अर्थ मृदा संरक्षण के अन्तर्गत भूमि की उत्पादकता (soil productivity) को विभिन्न विकारों, जैसे - लवणीयकरण, भूक्षरण, अम्लीयता, आदि से सुरक्षित रखना है, अर्थात् भूमि को किसी भी रूप में बर्बाद होने से रोकना मृदा संरक्षण (soil conservation in hindi) कहलाता है ।

इसके अन्तर्गत भूमि की उत्पादकता को संरक्षित करने के लिये खादों का प्रयोग, फसल चक्र का प्रयोग, सिंचाई एवं जल निकास, भू - क्षरण को रोकना, मृदा को क्षारीय व अम्लीय होने से रोकना उनके सुधार, आदि बातें सम्मिलित हैं ।

मृदा संरक्षण की परिभाषा | definition of soil conservation in hindi

मृदा संरक्षण (soil conservation in hindi) - मृदा के इस प्रकार प्रयोग किए जाने का विषय है जिस प्रकार उसे किया जाना चाहिए ।

मृदा संरक्षण की परिभाषा - "मृदा संरक्षण खेती करने की वह विधि हैं जिसमें मृदा उपयोग क्षमता का पूरा-पूरा लाभ उठाकर मृदा को क्षरण से बचाया जा सकें ।"

मृदा संरक्षण किसे कहते हैं | soil conservation in hindi

भूमि के कणों का ह्रास रोकने के साथ - साथ भूमि की उत्पादकता बनाये रखना मृदा संरक्षण (soil conservation in hindi) कहलाता है । 

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मृदा संरक्षण के सिद्धान्त | principles of soil conservation in hindi

भूमि संरक्षण का मूल सिद्धान्त भूमि का बुद्धिमत्तापूर्ण प्रयोग एवं प्रबन्ध ।

भूमि संरक्षण के तीन सिद्धान्त हैं-

  • जिस कार्य के लिये जो भूमि उपयुक्त है उसी कार्य के लिये उसका उपयोग किया जाये ( Each particle of land should be used for which it is best suited. )
  • कोई भी भूमि बेकार न पड़ी रहनी चाहिए ( No land should remain idle. )
  • मृदा उत्पादकता को उच्च स्तर पर स्थिर रखा जाये ( Productivity of land should be maintained sufficiently at high level. )


मृदा संरक्षण की प्रमुख विधियां लिखिए | methods of soil conservation in hindi 

अतः मृदा के प्रतिकारकों को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित उपाय मृदा संरक्षण के लिये कारगर हो सकते हैं -

  • कृषि विधियाँ या सस्य वैज्ञानिक विधियाँ ( Agricultural Methods )
  • यांत्रिक विधियाँ ( Mechanical Methods )
  • वृक्षारोपण एवं घास रोपण ( Afforestation and Agrostological Methods )


1. कृषि विधियों द्वारा मृदा अपरदन रोकना -

  • समोच्च खेती ( Contour Cultivation — ढालू भूमियों में जुताई, बुवाई, सिंचाई, गोड़ाई, आदि कृषि क्रियायें ढाल के विपरीत दिशा में समोच्च रेखा पर करनी चाहिये । शुष्क तथा नम दोनों ही प्रकार की जलवायु वाले कृषि उपयोगी है । कम वर्षा वाले क्षेत्रों में समोच्च कृषि भूमि में जल संरक्षण व समुचित वितरण में सहायक होती है । अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसके द्वारा अपधावन जल को अवरुद्ध करके, भूमि में जल प्रवेश बढ़ाकर क्षरण हानि को रोका जा सकता है ।
  • भू - परिष्करण ( Tillage ) - भूमि संरक्षण के लिये जुताई तथा उसकी गहराई का विशेष महत्व है । भारी भूमियों अधिक एवं गहरी जुताई जल प्रवेश को बढ़ा देती है । हल्की भूमियों में बहुत अधिक जुताई नहीं करनी चाहिये । ग्रीष्म ऋतु की जुताई जल प्रवेश के बढ़ाने में सहायक होती है । ग्रीष्म ऋतु में खाली खेत छोड़ना लाभदायक नहीं होता ।
  • आच्छादित भू - परिष्करण ( Mulch Tillage ) - भूपरिष्करण की वे क्रियायें जो खेत में ढेलेनुमा स्थिति पैदा करे और फसल अवशेषों को भूमि में मिलाने में सहायक हों , कृत्रिम आच्छादन का काम करती हैं, क्योंकि यह आच्छादन भूमि संरक्षण के साथ - साथ नमी संरक्षण के लिये भी उपयोगी होता है । शुष्क तथा अर्द्ध - शुष्क क्षेत्रों में भूमि संरक्षण के लिये V आकार यन्त्र (sweeps) या टिलर्स से भू - परिष्करण की क्रियायें करनी चाहिये । मृदा को क्षरण से बचाने के लिये मृदा की सतह प भूसा, पत्तियों या पोलिथीन का कृत्रिम आवरण बहुत ही लाभकारी पाया जाता है ।
  • पट्टियों में फसल उत्पादन या पट्टिका खेती ( Strip Cropping ) — ऐसे क्षेत्र जहाँ पर जल द्वारा मृदा क्षरण की सम्भावना होती है, वहाँ पर ढाल के विपरीत दिशा में समोच्च रेखा पर क्षरण अवरोधी (erosion resisting crops) व अरोध फसलों (erosion permitting crops) को एकान्तर पट्टियों में उगाते हैं । अवरोधी फसल की पट्टी अपधावन की मात्रा व गति को कम करने के साथ-साथ ऊपर से अपधावन में बह कर लाई गई मिट्टी को भी अपने क्षेत्रों में जमा कर देती है ढालू भूमियों पर यह पट्टियां ढाल की विपरीत दिशा में रखी जाती है अवरोधी अरोधी पट्टियों की चौड़ाई साधारणतया एक व तीन (1:3) के अनुपात में रखते हैं ।


2. यांत्रिक विधियों द्वारा मृदा अपरदन रोकना -

  • कन्टूरिंग ( Contouring ) - जब भू-परिष्करण की क्रियायें ढाल के विपरीत दिशा में समोच्च रेखा पर जाती हैं तो उसे कन्टूरिंग कहते हैं । कन्टूरिंग विधि से खेती करने पर कम वर्षा वाले क्षेत्रों में नमी का संरक्षण होता है तथा अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मृदा क्षरण से भूमि का बचाव होता है । सम्पूर्ण क्षेत्रों में नमी का समान वितरण होता है । समय , धन व श्रम की बचत होती है ।
  • वेदिका खेती ( Terrace farming ) — वेदिका खेती अपवाह जल एवं क्षरण नियन्त्रण की वह कार्य प्रणाली है जिसके अन्तर्गत भूमि के ढाल की आड़ी दिशा में मिट्टी या पत्थर के भराव (embankment) अथवा कूटक और नालियाँ (ridges and channels) बनाई जाती हैं । इन रचनाओं को ही वेदिकायें (terraces) कहते हैं । ये वेदिकायें एक तरह से चौड़ा बाँध या मेड़ होती हैं जिन पर खेती की जाती है । वेदिकाओं के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं - ढाल की प्रवणता एवं लम्बाई को कम करना, कम वर्षा वाले क्षेत्रों में अपवाह जल का अवरोधन तथा भूमि में नमी संरक्षण अथवा भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में अतिरिक्त अपवाह जल को सुरक्षित एवं अक्षरणशील वेग पर किसी जल मार्ग की तरफ मोड़ देना ।


3. वृक्षारोपण एवं घास रोपण विधियों द्वारा मृदा अपरदन रोकना -

जो भूमि ज्यादा क्षरित हो गई हैं तथा जिस पर फसलोत्पादन नहीं हो सकता उन भूमियों पर वृक्षारोपण या घास रोपण कर देना चाहिये । प्राकृतिक वनस्पति का भूमि संरक्षण में अधिक महत्व है । वृक्षों एवं घासों से भूमि को अधिक आच्छादन प्रदान होता है । पेड़ - पौधों एवं घासों की जड़ें भूमि के अन्दर मिट्टी को बाँधने के साथ - साथ पृष्ठीय जल स्रवण को बढ़ाती हैं, तथा उनके अवशेष भूमि में मिलकर भूमि की संरचना व उत्पादकता में सुधार करते हैं । बबूल, बेर, बाँस, शीशम, अमलतास, इमली, देवदार सागौन, आदि वृक्षों को 1x1x1 मीटर आकार के गड्ढे खोदकर लगाना चाहिये । दूब, नैपियर, सूडान, बफैलो घास, पैरा, अंजन गिनिया, ब्लू पेनिक, टिमोथी, आदि घासें लगाई जा सकती हैं ।


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