जल द्वारा मृदा क्षरण (water erosion in hindi) क्या है यह कितने प्रकार का होता है

वर्षा जल या बहते जल द्वारा मृदा कणों का एक स्थान से बहकर दूसरे स्थान पर जमा हो जाना ही जल क्षरण (water erosion in hindi) कहलाता हैं ।

जल द्वारा भूक्षरण वर्षा की बूँदों द्वारा मृदा कणों पर प्रहार के साथ ही प्रारम्भ हो जाता है जिसके फलस्वरूप मृदा कण मृदा समुदाय से ढीले होकर अलग हो जाते हैं ।

जल द्वारा मृदा क्षरण क्या है | water erosion in hindi

"वर्षा की बूंदों या बहते हुए जल द्वारा मृदा कणों का कटाव या बहाव ही जल क्षरण या जलीय अपरदन कहलाता हैं ।"

जल क्षरण प्रक्रिया तीन चरणों में पूर्ण होती है— 

  • सर्वप्रथम मृदा कणों का विलगाव ( कटाव )
  • विलगित कणों का दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित होना
  • अन्त में कणों का जमा हो जाना ।

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जल द्वारा मृदा क्षरण (water erosion in hindi) क्या है यह कितने प्रकार का होता है 


जल द्वारा मृदा क्षरण कितने प्रकार से होता हैं | types of water erosion in hindi

जल द्वारा भूमि का क्षरण कई रूपों में होता है, जिनका वर्णन निम्न प्रकार है -

  • अपस्फुरण क्षरण या वर्षा बूँद क्षरण ( Splash or Rain Drop Erosion ) - वर्षा की गिरती हुई बूँदों के प्रभाव के कारण भूमि के कणों का तितर - बितर होकर ऊपर की ओर उछलना तथा जल के माध्यम से एक स्थान दूसरे स्थान पर जाना अपस्फुरण क्षरण कहलाता है । वर्षा की बूँदें अपने प्रहार से भूमि के संगठित कणों को तोड़कर भूमि से अलग कर देती हैं । यह क्रिया बार - बार होने से भूमि की ऊपरी तह कठोर हो जाती है जिससे पृष्ठीय जल स्रवण दर (Infiltration rate) कम हो जाती है । अपस्फुरण क्षरण में सर्वप्रथम हल्के कण और तत्व नष्ट होते हैं जिससे भूमि की उर्वरता घट जाती है । प्रायः ऐसा देखा गया है कि जल की एक बूँद भीगी भूमि के कणों को 60 सेमी० ऊँचाई तथा 130-150 सेमी० की दूरी तक अपस्फुरित कर सकती है । लगभग 30 फुट प्रति सेकण्ड की गति से गिरती हुई वर्षा की बूँद अपने वजन का लगभग 14 गुना बल पैदा करने की क्षमता रखती है । यदि वर्षा की बूँदों का आकार 1 मिमी० से 5 मिमी० तक बढ़ जाये तो मृदा की पृष्ठीय जल स्रवण क्षमता (infiltration rate) लगभग 70 प्रतिशत घट जाती है तथा क्षरणीयता 120 प्रतिशत बढ़ जाती है । खाली भूमियों में तो भारी वर्षा द्वारा एक हैक्टेयर में 250 टन तक मिट्टी वायु में अपस्फुरित कर दी जाती है । अपस्फुरण द्वारा क्षरण की दर और मात्रा वर्षा बूँदों के आकार और वेग तथा वर्षा की प्रचण्डता पर निर्भर है । मिहारा ने ज्ञात किया कि अपस्फुरण क्षरण और बूँदों की गतिज ऊर्जा में एक सीधा सम्बन्ध पाया जाता है । बूँदों की गतिज ऊर्जा उनके निपाती वेग पर निर्भर करती है ।
  • परत क्षरण ( Sheet Erosion ) – इस प्रकार के क्षरण में भूमि की ऊपरी सतह पतली परतों के रूप में बहकर नष्ट ´होती रहती है । इसका कृषक को आसानी से अनुमान नहीं होता । जब पानी अधिक गन्दलापन लिये होता है तो इस प्रकार का कटाव अधिक होता है । यह क्षरण प्रायः उन भूमियों में अधिक होता है जिनकी निचली सतह में कठोर भूमि परत पाई जाती है तथा बहुत हल्की ढालू भूमि होती है । इसका मुख्य कारण अपस्फुरण क्षरण ही होता है ।
  • अल्प सरित या क्षुद्र सरिता क्षरण ( Rill Erosion ) – इस प्रकार का क्षरण मुख्य रूप से असमतल भूमियों में अधिक होता है । वर्षा का पानी अपधावन के रूप में ऊँचाई से नीचे की ओर बहकर चलता है जिसके साथ भूमि कण भी अधिक मात्रा में होते हैं । कुछ दूर बहकर यह पानी छोटी - छोटी नालियाँ या धारियाँ बन देता है, जो निरन्तर बहती रहती हैं । इन छोटी नालियों को क्षुद्र सरिता कहते हैं । निचले क्षेत्रों में इन नालियों का जाल - सा फैल जाता है । जुताई करने पर ये नालियाँ अदृश्य हो जाती हैं । कृषकों को इन नालियों की अपेक्षा नहीं करनी चाहिये, क्योंकि छोटी - छोटी नालियाँ मिलकर ही अवनालिका व खड्डों का रूप धारण कर लेती हैं ।
  • अवनालिका क्षरण ( Gully Erosion ) - क्षुद्र सरिता का विकसित रूप ही अवनालिका कहलाता है । बहते हुए पानी अपधावन द्वारा भूमि में गहरे कटाव (deeper cut) होने पर अवनालिका कहलाते इस प्रकार की गहरी नालियाँ (कटाव) कृषि कार्यों द्वारा नष्ट नहीं की सकती हैं बल्कि ये कृषि कार्यों में बाधक होती हैं । छोटी - छोटी नालियाँ मिलकर ही बड़ी नालियाँ, नालों एवं नदियों का रूप धारण करती हैं । इस प्रकार के कटाव को छोटी अवनालिका 1 मीटर से कम गहरी होती है । मध्यम अवनालिका मीटर से 5 मीटर तक तथा बड़ी अवनालिका 5 मीटर से अधिक गहरी होती है । क्षुद्र सरिता तथा अवनालिका के रूप में अपधावन जल का संकेन्द्रण ।
  • सरिता तट क्षरण ( Stream Bank Erosion ) — सरिताओं या नालों में जब बाढ़ का पानी आता है तो वह इनके किनारों को अधोरदन (under cutting) अथवा नीचे - नीचे काटता रहता है और किनारे कट कर इन सरिताओं अथवा नालों में फिसलते रहते हैं । इसको हम सरिता तट क्षरण कहते हैं । नदियों के किन्हीं किनारों पर जल वेग अधिक व किन्हीं किनारों पर जल वेग कम होता है । अधिक वेग वाले किनारे पर कटाव होता रहता है ।
  • भूस्खलन क्षरण ( Slip Erosion ) - मृदा का यह क्षरण अधिक मात्रा एवं अधिक प्रचण्डता से होने वाली वर्षा के द्वारा होता है । इसके अन्दर जब भूमि नमी से पूर्ण संतृप्त हो जाती है तो खड़े ढालों पर स्थित ढीली चट्टान अथवा भूखण्ड स्खलित होकर नीचे लुढ़क जाते हैं । प्रायः इस प्रकार का कटाव पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है ।
  • हिमानी क्षरण ( Glacial Erosion ) - यह क्षरण अत्यधिक हिमपात वाले पर्वतीय क्षेत्रों में दृष्टिगोचर होता है । पर्वतीय ढालों पर वृहदाकार हिमखण्ड जिन्हें "हिमनद या ग्लेसियर" कहते हैं, स्खलित होकर मार्ग में पड़ने वाली चट्टानों को विखण्डित व विचूर्णित कर देते हैं । यह एक प्राकृतिक क्षरण है ।
  • सागरीय क्षरण ( Marine Erosion ) - इस प्रकार का क्षरण समुद्र के तटीय क्षेत्रों में पाया जाता है । समुद्री तरंगों और ज्वार धाराओं द्वारा समुद्र तटों का क्षरण होता है ।
  • पीठिका क्षरण ( Pedestal Erosion ) - जब अधिक क्षरणीय भूमि के कुछ पृष्ठांश वृक्षों की जड़ों, पत्थरों या अन्य क्षरित किसी क्षरणरोधी पदार्थ से ढके होते हैं तो वे भाग वर्षा की बूँदों द्वारा क्षरित नहीं हो पाते जब कि इर्द - गिर्द की पृष्ठ मृदा हो जाती है । क्षरणरोधी पदार्थों से ढके हुए ये पृष्ठांश पीठिका कहलाते हैं ।
  • श्रृंग क्षरण ( Pinnacle Erosion ) — यह बुरी तरह से क्षरित हुई बीहड़ भूमि का लक्षण है । जब बड़े तटों पर ऊपर से नीचे की ओर अत्यधिक मात्रा में अल्प सरित क्षरण हो जाता है तो जगह - जगह स्तम्भाकार शृंग (columnar pinnacles) दिखाई देते हैं । इनकी मध्यवर्ती मिट्टी बह गई होती है ।


जल द्वारा मृदा क्षरण को प्रभावित करने वाले कारक | factors affecting water erosion in hindi

  • जलवायु ( Climate )जलीय कटाव को प्रभावित करने में, जलवायु सम्बन्धी कारकों में वर्षा, तापमान तथा वायु प्रमुख हैं । तापमान तथा वायु का प्रभाव वाष्पीकरण एवं उत्स्वेदन पर पड़ता है । अतः वर्षा ही मुख्य रूप से भू-क्षरण के लिये उत्तरदायी है । वर्षा की मात्रा, प्रचण्डता, अवधि, वर्षा की बूँदों का वेग एवं आकार, वर्षा से प्राप्त गतिज ऊर्जा भू - क्षरण को प्रभावित करती है । मृदा-क्षरण के लिये सबसे महत्वपूर्ण प्रतिकारक वर्षा से प्राप्त गतिज ऊर्जा (kinetic energy) है जो मृदा कणों को विलगित करने में सहायक होती है ।
  • स्थलाकृति ( Topography ) - ढालू भूमि सतह भू - क्षरण में काफी सहायक होती है । इसका प्रत्यक्ष प्रभाव जल - प्रवाह की गति को बढ़ाने में होता है । अतः ढालू भूमियों की ढाल का अंश व ढाल की लम्बाई अपधावन एवं अपरदन दोनों को प्रभावित करते हैं । यदि ढाल के अंश (degree ofslope) को दो गुना बढ़ा दें तो मृदा कटाव 2.8 गुणा बढ़ जाता है ।
  • वनस्पति ( Vegetation ) — भूमि की सतह पर विद्यमान प्राकृतिक वनस्पतियाँ, कृषि फसलें व उनके अवशेष आदि भू - क्षरण को कम करने में सहायक होते हैं । उनका प्रभाव निम्नलिखित रूप से पड़ता है- वर्षा की बूँदों को रोक कर क्षरणशील ऊर्जा को कम करना, अपधावन की मात्रा एवं गति को कम करना, मृदा संरचना एवं सरन्ध्रता में सुधार कर भूमि में जल प्रवेश दर को बढ़ाना, मृदा में जैविक क्रियाओं में वृद्धि करना, वनस्पति के अवशेष मृदा क्षरण को रोकते हैं क्योंकि जीवांश पदार्थ के सड़ने से एक चिपचिपा पदार्थ निकलता है जो उत्स्वेदन द्वारा मृदा जल का हास करना और इस प्रकार भूमि में पानी की कमी कर जल की माँग को बढ़ाना । कणों को आपस में बाँधे रखता है अथवा मृदा संचलन में यांत्रिक व्यवधान उत्पन्न करना ।
अतः वनस्पति से आच्छादित भूमि होने पर मिट्टी में जल प्रवेश की दर बढ़ जाती है । वर्षा के पानी की अधिकतम मात्रा शोषित हो जाती है तथा अपधावन के रूप में कम पानी रह जाता है । साथ ही वर्षा की गिरती हुई बूँदें सीधे भूमि कणों पर प्रहार नहीं कर पाती हैं । उनकी गतिज ऊर्जा वनस्पति से टकराने पर कम हो जाती है । पत्तियों व तनों द्वारा बहते हुए पानी की गति में बाधा उत्पन्न होती है । विलगित कण वनस्पति द्वारा रोक लिये जाते हैं ।

  • भूमि ( Soil ) - भूमि के प्रकार एवं गुणों का जलीय कटाव पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है । भूमि की संरचना के साथ - साथ भौतिक एवं रासायनिक गुण जलीय कटाव में कटने तथा बहने में अवरोध उत्पन्न करके अपना प्रभाव डालते हैं । “मृदा के जो गुण पृष्ठीय जल स्रवण ( जल प्रवेश ) एवं अपधावन को प्रभावित करते हैं, जलीय कटाव पर अपना प्रभाव डालते हैं ।" भारी भूमि में मृदा क्षरण की सम्भावना कम तथा हल्की भूमियों में अधिक होती है । मृत्तिका मिट्टी ( मटियार ) में समुच्चयन (aggregation) रेतीली मिट्टी की अपेक्षा अधिक होने के कारण क्षरणीयता कम होती है । भारी मिट्टी के कण कटाव के प्रति अवरोध उत्पन्न करते हैं । गहरी पारगम्य भूमियाँ उथली पारगम्य भूमियों की तुलना में कम क्षरणीय होती हैं । पृष्ठीय जल स्रवण की दर अधिक होने पर एवं पारगम्यता (permeability) अधिक होने पर अपधावन की मात्रा कम होती है । अतः क्षरण कम होगा ।
  • मानवीय कारक ( Human factor ) - मनुष्यों द्वारा वनस्पति को नष्ट कर देने पर भू - क्षरण बढ़ जाता है । मनुष्य जंगलों की कटाई (deforestation), चरागाहों की समाप्ति एवं उसका अत्यधिक उपयोग, स्थानान्तरित खेती करके वनस्पति को नष्ट कर देता है जिनके फलस्वरूप भूमि में पृष्ठीय जल स्रवण की दर कम हो जाती है और अपधावन की मात्रा एवं गति बढ़ जाती है । परिणामस्वरूप भू - क्षरण अधिक होता है । मनुष्य दोषपूर्ण व अवैज्ञानिक कृषि तरीके अपनाकर भी भू - क्षरण को बढ़ावा देता है । जैसे ढाल की दिशा में जुताई करना ।

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