ऐसी मृदा जिनमें क्षारीय पोषक तत्वों की कमी तथा जिनका पी.एच. मान 7 से कम होता हैं उन्हें अम्लीय मृदा (acidic soil in hindi) कहा जाता हैं ।
अम्लीय मृदा अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती है ।
अम्लीय मृदा किसे कहते हैं | acidic soil in hindi
अम्लीय मृदा की परिभाषा - "जब मृदा विलयन या कोलाइडी सम्मिश्र पर OH- आयन की अपेक्षा H+ की अधिकता होती है तो भूमि प्रतिक्रिया में अम्लीय गुण प्रदर्शित करती है ऐसी भूमि ही अम्लीय मृदा (acidic soil in hindi) कहलाती है । इसका पी-एच 7 से कम होता है ।"
अम्लीय मृदा किसे कहते हैं अम्लीय मृदा बनने कारण एवं सुधार |
अम्लीय मृदा बनने के क्या कारण होते हैं | due to acidic soil in hindi
अम्लीय भूमियाँ नम जलवायु के प्रदेशों में पाई जाती हैं क्योंकि अधिक वर्षा के कारण भस्मों (bases) की अधिक मात्रा वर्षा जल के साथ निक्षालन क्रिया द्वारा भूमि की निचली सतहों में पहुँचकर नष्ट हो जाती है ।
साधारणतया इस मिट्टी का पी - एच 4.0-6.8 के बीच रहता है । भारत में अम्लीय मृदायें (acidic soil in hindi) केरल, आसाम, बंगाल, बिहार, उड़ीसा, आदि प्रदेशों में पाई जाती हैं । उत्तराखंड की पर्वतीय मृदायें अम्लीय हैं ।
अम्लीय चट्टानों (क्वार्ट्ज या सिलिका खनिज युक्त) से निर्मित मृदायें अम्लीय होती हैं साथ ही अम्लीय उर्वरकों का लगातार प्रयोग करने से भूमि अम्लीय हो जाती है । मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अधिक होने पर उसका विच्छेदन (अपघटन) होने से CO2 और अनेक अम्ल पैदा होते हैं । CO2 जल के साथ मिलकर H2CO3 (कार्बोनिक अम्ल) बनाती है ।
इस प्रकार भूमि अम्लीय हो जाती है, क्योंकि H2CO3 के H+ आयन कोलाइडी सम्मिश्र से Ca, Mg को विस्थापित कर देते हैं ।
मृदा की अम्लीयता के प्रकार | types of acidic soil in hindi
मृदा अम्लता निम्नलिखित दो प्रकार की होती है -
- सक्रिय अम्लता ( Active Acidity ) — यह अम्लता मृदा विलयन में H + आयन्स के सान्द्रण को बतलाती है । इसे pH द्वारा मापते हैं ।
- विभव या सुरक्षित अम्लता ( Potential or Reserve Acidity ) — यह अम्लता कोलाइडी सम्मिश्र पर H+ आयन्स का सान्द्रण बतलाती है । मृदा विलयन में अम्लता कम होने पर यही अम्लता पूर्ति कर देती है जिससे शुरू की अवस्था में चूना मिलाने पर प्रभाव दिखाई नहीं देता है क्योंकि कोलाइडी सम्मिश्र के H+ आयन्स मृदा विलयन में आ जाते हैं ।
अम्लीय भूमि का सुधार कैसे करें | how to improve acidic soil in hindi
अम्लीय भूमि को सुधारने के लिये चूना का प्रयोग करते हैं । चूना देने वाले सामान्य द्रव्य निम्नलिखित हैं -
कैल्सिक चूना पत्थर (CaO)
- डोलोमाइट चूना पत्थर CaMg (CO3)2
- बिना बुझा हुआ चूना (CaO)
- बुझा हुआ चूना {Ca (OH)2}
- मार्ल
जब भूमि में चूना मिलाया जाता है तो निम्न प्रतिक्रिया होती है —
- जब चूना किसी भी रूप में (ऑक्साइड, हाइड्रॉक्साइड या कार्बोनेट) अम्लीय मृदा में मिलाया जाता है तो CO2 से क्रिया करके बाइकार्बोनेट में बदल जाता है ।
- चुने के प्रयोग से Ca और Mg कोलाइडी सम्मिश्रण पर आयन्स को विस्थापित कर अधिशोषित हो जाते हैं ।
- चूना महीन पीस कर वर्षा के प्रारम्भिक दिनों में भूमि में मिलाना चाहिये । चूना खेत में मिलाते समय भूमि सूखी हो । विभिन्न प्रकार की भूमियों में 5.5 से 6.5 pH तक बढ़ाने में निम्न मात्रा चूना पत्थर की प्रयोग करनी चाहिये । ( i ) बलुअर 2.5 टन ( ii ) दोमट 5.0 टन ( iii ) भारी दोमट 7.5 टन ( iv ) चिकनी मिट्टी 8.75 टन ।
- क्षारीय उर्वरक, जैसे- सोडियम नाइट्रेट, कैल्सियम नाइट्रेट का प्रयोग करना चाहिये ।
- अम्लता रोधी या अम्ल सहिष्णु फसलों को उगाना - अम्ल सहिष्णु फसलें अम्लीय भूमि में उगानी चाहिये । धान, जई, अलसी, राई, मक्का, अरण्डी, आलू, शकरकन्द, लोबिया, आदि उगानी चाहिये ।
- समुचित जल निकास का प्रबन्ध करें ।
चुने का अम्लीय मृदा पर क्या प्रभाव पड़ता है
1. भौतिक प्रभाव -
- चूना डालने से भारी मृदाओं की संरचना दानेदार हो जाती है ।
- मृदा की पृष्ठीय स्रवण दर (infiltration rate) बढ़ जाती है ।
- भूमि की जलधारण क्षमता बढ़ती है ।
- चूना मिलाने से वायु तथा जल संचार बढ़ जाता है जिससे पौधों की अच्छी वृद्धि होती है ।
- मृदा की भौतिक दशा अच्छी हो जाती है ।
- चिकनी मिट्टी में चूना मिलाने से अधिक दरारें नहीं पड़तीं ।
2. रासायनिक प्रभाव -
- H+ आयन्स का सान्द्रण कम हो जाता है तथा OH- आयन्स का सान्द्रण बढ़ जाता है । अतः अम्लीय भूमि का सुधार हो जाता है क्योंकि चूना अम्लीय भूमि को उदासीन करता है ।
- सूक्ष्म तत्वों, जैसे - AI, Fe, Mn की विलेयता (solubility) कम हो जाती है जिससे पौधों पर हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता है ।
- Ca तथा Mg की उपलब्धता बढ़ जाती है ।
- चूना जैविक पदार्थ का अपघटन शीघ्र कराकर नाइट्रोजन की प्राप्यता (aailability) को बढ़ाता है ।
- पौधों में फॉस्फोरस की उपलब्धता बढ़ जाती है तथा इसका यौगिकीकरण (fixation) कम हो जाता है ।
3. जैविक प्रभाव -
- अम्लीय मृदाओं में चूना लगाने से सूक्ष्म जीवों की क्रियाशीलता बढ़ जाती है ।
- जीवांश का अपघटन शीघ्र होने लगता है ।
- विभिन्न प्रक्रमों की दर बढ़ जाती है ।
- अम्लीय भूमि में चूना लगाने से अधिक पैदावार मिलती है ।
अम्लीय भूमि कृषि फसलों के लिये क्यों हानिकारक है?
अम्लीय भूमि निम्नलिखित कारणों से कृषि फसलों को हानिकारक होती है —
- लोहा, मैंगनीज, बोरॉन, ताँबा, एलुमिनियम, आदि तत्वों की पौधों को केवल सूक्ष्म मात्रा में आवश्यकता होती है । अम्लीय दशा में इन तत्वों की विलेयता बढ़ जाने के करण अधिक मात्रा में उपलब्ध होने लगते हैं अतः हानिकारक होते हैं ।
- पोषक तत्वों की प्राप्यता पर प्रभाव पोषक तत्व N, P, K, S, Ca, Mg की अधिकतम उपलब्धता 6.5-7.5 pH मान पर है । अधिक अम्लीयता होने पर इन तत्वों की कमी हो जाती है ।
- मृदा का फॉस्फोरस अप्राप्य रूप में परिवर्तित हो जाता है । Al, Fe, Mn फॉस्फेट के साथ मिलकर हाइड्रॉक्सी फॉस्फेट बनाते हैं जो पौधों को अग्राह्य है ।
- जीवाणुओं की क्रियाशीलता मंद पड़ जाती है ।
- पौधों की जड़ों के ऊतकों H+ पर का विषैला प्रभाव पड़ता है ।