मृदा कोलाइड क्या है यह कितने प्रकार होते हैं | soil colloids in hindi

मृदा कोलाइड क्या है | soil colloids in hindi

मृदा के एक माइक्रोन या 0.001 मिमी० से छोटे कणों को मृदा कोलाइड्स (soil colloids in hindi) कहा जाता है ।

परन्तु इनमें कोलाइडल गुण तभी आता है जब ये कार्बनिक पदार्थों से मिश्रित हो जाते हैं ।

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मृदा कोलाइड क्या है | soil colloids in hindi


मृदा कोलाइड कितने प्रकार के होते हैं | types of soil colloids in hindi

मृदा में निम्न दो प्रकार के कोलाइड्स होते हैं -

  • अकार्बनिक कोलाइड्स ( Inorganic soil colloids )
  • कार्बनिक कोलाइड्स ( Organic soil colloids )


अकार्बनिक कोलाइड्स ( Inorganic soil colloids ) —

इनका निर्माण चट्टानों के विघटन से हुआ है । अधिकतर अनेक प्रकार की क्ले के रूप में मिलते हैं । इस प्रकार अकार्बनिक कोलाइड्स में मृत्तिका कण, लोहे, एलुमिनियम सिलिकॉन के ऑक्साइड्स तथा आयरन एलुमिनियम एवं कैल्सियम के फॉस्फेट होते हैं ।

कार्बनिक कोलाइड्स ( Organic soil colloids ) -

ये जैव पदार्थों के अपघटन से प्राप्त होते हैं और ह्यूमस के रूप में होते हैं । दोनों प्रकार के कोलाइडी पदार्थों का एक विषम मिश्रण मृदा कोलाइडी कॉम्पलैक्स (soil colloidal complex) कहलाता है ।


मृदा कोलाइड्स संयोजन का कार्य करते हैं -

बालू और सिल्ट कणों को मृतिका कण बाँधते हैं और द्वितीयक मृदा का कार्य करते हैं । कोलाइड्स के कारण स्थिर कण पुंजों का निर्माण होता है । अकार्बनिक कोलाइड्स की अपेक्षा पुंजीकरण में कार्बनिक कोलाइड्स का अधिक महत्व होता है ।

कार्बनिक कोलाइड्स मृत्तिका कणों का भी पुंजीकरण करते हैं और बड़े आकार के कण पुंजों का निर्माण होता है । ह्यूमस कोलाइड्स मृदा कणों की सतह पर अधिशोषित हो जाते हैं और निर्जलीकरण होने पर कण पुंज बन जाते हैं ।

जेमिसन ( 1953 ) ने बताया कि बलुआर भूमियों में कार्बनिक पदार्थ डालने पर इन भूमियों में प्राप्त जल की मात्रा इसलिये बढ़ जाती है क्योंकि अधिक पुंजीकरण (aggregation) हो जाता है । और भूमि की अन्य क्रियायें, जैसे - पोषक तत्वों का आयनों के रूप में अधिशोषण, ऊर्णीपिंडन (flocculation) फूलना सिकुड़ना, सुघट्यता, संसंजन और आसंजन, आदि मृदा कोलाइड्स द्वारा नियन्त्रित होते हैं ।

ऊर्णन या ऊर्णीपिंडन ( Flocculation ) –

सूक्ष्म मृदा कणों का आपस में मिलकर छोटे - छोटे समूह बना लेना ऊर्णन कहलाता है । अधिकांश मृत्तिका मृदाओं का यह एक उल्लेखनीय गुण है ।

यह गुण भूमि के कोलाइडी पदार्थ के स्कंदन (coagu lation) के कारण विकसित होता है यह एक विद्युत गतिज (electro kinetic) क्रिया है । विभव पात (potential drop) हो जाने पर मृदा कण आवेश में आकर्षित होते हैं और ऊर्णिका (floccule) का निर्माण होता है । जब तक कणों पर आवेश रहता है, वे निलम्बन में रहते हैं तथा आवेश कम या समाप्त होने पर कण आपस में मिलकर ढीला समुच्चय (loose aggregates or flocs) बनाते हैं जिसे ऊर्णीपिंडन कहते हैं । इसके विपरीत प्रक्रम, जिसमें समुच्चय फिर कणों में टूट जाते हैं, को “विऊर्णीपिंडन या विक्षेपण” (deflocculation) कहते हैं ।

ऊर्णन या संकणन (flocculation) पर विद्युत अपघट्य (electrolyte) का बड़ा प्रभाव पड़ता है । विद्युत अपघट्य की थोड़ी मात्रा भी घोल की अधिक मात्रा को ऊर्णित करने की क्षमता रखती है ।

कोलाइडी पदार्थ जल ग्रहण कर फूल जाते हैं जिससे आयतन में वृद्धि होती है । मृदा कोलाइड्स की मात्रा मृदा जैव पदार्थ की मात्रा पर निर्भर करती है । यह जैव पदार्थ भूमि के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों को प्रभावित करता है ।


मृदा जैव पदार्थ -

जन्तु एवं वनस्पति पदार्थों के जो अवशेष मृदा में मिलाये जाते हैं या मृदा में ही स्वयं होते हैं, मृदा जैव पदार्थ पदार्थ कहलाते हैं । मृदा में जैव पदार्थ की पूर्ति यद्यपि जन्तु - जीवाणुओं तथा कीड़े - मकोड़े के मृत शरीर एवं मृदा में मिलने वाले जैविक खाद से होती है किन्तु फिर भी इसका मुख्य तथा अधिकांश भाग वनस्पति से ही प्राप्त होता है । यह मृदा का मुख्य अवयव है । जैव पदार्थ पोषक तत्वों का भंडार है ।


जैव पदार्थ का मिट्टी पर प्रभाव | effect of organic matter on the soil in hindi

यदि मृदा जैव पदार्थ पर्याप्त मात्रा में डाला जाता है या उपस्थित होता है तो वह मृदा के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुणों को प्रभावित करता है ।

1. भौतिक प्रभाव ( Physical Effect ) -

  • जैविक पदार्थ मिट्टी को दानेदार बनाता है । दानेदार मृदा संरचना पौधों की वृद्धि तथा जड़ों के विकास के लिये सर्वोत्तम संरचना है ।
  • भूमि की जलधारण क्षमता को बढ़ाता है ।
  • चिकनी मिट्टी (clay soil) में जैविक पदार्थ मिलाने से उसकी सुघट्यता (plasticity) तथा संसंजन (cohesion) कम हो जाता है जिससे वायु एवं जल संचार इस भूमि में बढ़ जाता है । मिट्टी हल्की हो जाती है ।
  • बलुई मिट्टी (sandy soil) में जैविक पदार्थ डालने पर उसकी सुघट्यता संसजन क्षमता बढ़ जाती है क्योंकि जैविक पदार्थ के सड़ने गलने से चिपकने वाले संकीर्ण कार्बनिक पदार्थ पैदा होते हैं जो कणों को आपस में बाँधे रखते हैं ।
  • चिकनी मिट्टी को भुरभुरा (friable) बनाता है ।
  • भूमि में जैविक पदार्थ का मल्च के रूप में प्रयोग करने पर वाष्पीकरण द्वारा होने वाली पानी की हानि कम हो जाती है । इस प्रकार जैव पदार्थ पानी को उड़ने से रोकता है ।
  • अधिक मात्रा में डालने पर भूक्षरण को कम करता है ।
  • मृदा ताप को नियमित रखता है । कार्बनिक पदार्थ की सतही मल्च सर्दी में भूमि को गर्म रखती है तथा गर्मी में भूमि का तापमान कम रखता है ।
  • जैव पदार्थ भूमि को काला रंग प्रदान करता है जो कि मृदा में ताप सोखने की शक्ति बढ़ाता है ।
  • वातन (aeration) तथा जल निकास (drainage) उत्तम हो जाता है । जल संचारण भी बढ़ जाता है ।
  • मोटे कार्बनिक पदार्थ से मृदा पर गिरने वाली वर्षा की बूँदों का प्रभाव कम हो जाता है । जल का अन्तःस्रवण (शोषण)  Infiltration) बढ़ जाता है जिससे पौधों को अधिक जल की मात्रा उपलब्ध होती रहती है ।
  • छोटा तथा मोटा कार्बनिक पदार्थ मृदा सतह पर बिछे रहने से हवा द्वारा कटाव कम होता है ।


2. रासायनिक प्रभाव ( Chemical Effect ) -

  • पौधों के पोषक तत्वों का भण्डार होता है । जिस भूमि में जीवांश की मात्रा जितनी अधिक होगी उतनी ही उसकी उर्वरा शक्ति भी अधिक होगी । जैव पदार्थ में पौधों की वृद्धि के लिये सभी आवश्यक पोषक तत्व उपस्थित रहते हैं । जैव पदार्थ का अपघटन होने पर पोषक तत्वों के साथ - साथ हारमोन्स तथा एन्टीबायोटिक भी प्रदान करता है ।
  • कार्बनिक पदार्थ मिलाने से धनायन्स विनिमय क्षमता (cation exchange capacity) बढ़ जाती है । यदि मृदा 1% जैव पदार्थ मिलाया जाये तो धनायन्स विनिमय क्षमता 4.9 मि० ई० प्रति 100 ग्राम बढ़ जाती है ।
  • जैव पदार्थ के अपघटन (decomposition) से जो अम्ल उत्पन्न होते हैं वे खनिजों को घुलाकर पोषक तत्वों की प्राप्यता (availability) को बढ़ा देते हैं ।
  • ताजे कार्बनिक पदार्थ सड़ने पर साइट्रेट्स, लैक्टेट्स, आदि कार्बनिक यौगिक पैदा होते हैं जो लोहा व एलूमिनियम (AI) के साथ संयोग करके फॉस्फोरस की प्राप्य मात्रा को बढ़ाते हैं ।
  • मिट्टी की उभय प्रतिरोधी क्षमता (buffering capacity) को बढ़ाता है ।
  • कार्बनिक अम्ल, जैसे - साइट्रिक, कैथोइक, आदि क्षारीय मृदा के पी० एच० को कम करते हैं तथा क्षारीयता कम होती है ।
  • मृदा कार्बनिक पदार्थ के विच्छेदन से ह्यूमस बनता है, जो विनिमय तथा प्राप्य होने वाले धनायन्स जैसे Ca++, Mg++,K++ आदि के लिये अस्थायी रूप से एक भण्डारगृह का कार्य करता है जिससे तत्वों का निक्षालन (leaching) द्वारा होने वाली हानि भी रुक जाती है । जीवांश आयन की अधिशोषण क्षमता अधिक होती है ।
  • इसमें नत्रजन, फॉस्फोरस, गन्धक कार्बनिक रूपों में पाये जाते हैं । मिट्टी में अधिकांश नत्रजन कार्बनिक रूप में ही विद्यमान रहती है । किसी एक समय में मिट्टी की नत्रजन अकार्बनिक रूप (inorganic) में 1-3% तक ही होती है ।


3. जैविक प्रभाव -

  • मृदा जीवाणुओं (micro - organisms) के लिये जैव पदार्थ भोजन एवं ऊर्जा प्रदान करता है । ये सूक्ष्म जीव ( जीवाणु ) अमोनीकरण, नाइट्रीकरण तथा नाइट्रोजन यौगिकीकरण, आदि क्रियायें सम्पन्न करते हैं । 
  • लाभदायक जीवों जैसे केंचुओं (earthworm) लिये भोजन प्रदान करता है । ये जीव बिल बनाकर भूमि में वातन (aeration) तथा जल निकास को सुधारते हैं ।

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