वायु द्वारा मृदा क्षरण (wind erosion in hindi) क्या हैं यह कितने प्रकार से होता हैं

वायु के द्वारा मृदा के कणों का एक स्थान से उड़ कर दूसरे स्थान पर जा कर जमा हो जाना है वायु द्वारा क्षरण (wind erosion in hindi) कहलाता है

मरुस्थलीय क्षेत्रों में यह एक भयंकर समस्या है । वायुवीय मृदा क्षरण का सबसे बड़ा दुष्परिणाम मृदा के गठन पर पड़ता है, क्योंकि वायु द्वारा धीरे - धीरे भूमि के हल्के एवं बारीक कण तथा जीवांशयुक्त कण क्षरित हो जाते हैं ।

भारतवर्ष में वायुवीय भूमि क्षरण का कुप्रभाव सबसे अधिक राजस्थान और उसके आस-पास के क्षेत्रों में देखने को मिलता है । उत्तर प्रदेश में मथुरा, इटावा, आगरा तथा अलीगढ़ के क्षेत्र भी इससे प्रभावित हैं ।

वायु क्षरण के कारण रेत की बड़ी मात्रा उर्वर भूमियों पर जमा हो जाती है और वह कृषि के अयोग्य हो जाती है ।

वायु द्वारा मृदा क्षरण क्या हैं | wind erosion in hindi

शुष्क तथा अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में प्रायः तापमान अधिक होता है, भूमि वनस्पति विहीन होती है तथा हवा की गति में अवरोध उत्पन्न करने के लिये वृक्षों का अभाव होता है, मीलों लम्बा समतल मैदान होता है । भूमि हल्की व बालू वाली होती है, वायु द्वारा मृदा क्षरण (wind erosion in hindi) होता है ।

इन क्षेत्रों में वायु निर्बाध रूप में अधिक वेग से चलती है और कणों को आसानी से बहा ले जाती है । वायुवीय भूमि क्षरण को प्रभावित करने में प्रमुख रूप से वायु का वेग, वायु में विक्षोभ (turbulence ) भूमि का गुण, भूमि का तल रूप तथा आस - पास पायी जाने वाली वनस्पतियाँ होती हैं ।

वायु अपने वेग और दिशा में अधिक परिवर्तनशील होने के कारण झोंकों (gusts), भँवरों (eddies) और प्रतिधाराओं (cross currents) को उत्पन्न करती है जिनके फलस्वरूप मृदा कण परिवहित होते हैं ।

भूमि पृष्ठ जितना ही रुक्ष होगा, मृदा कण उतने ही अधिक मात्रा में संचलित होंगे क्योंकि पृष्ठ की रुक्षता वायु पर घर्षणात्मक प्रभाव डालती है जिसके फलस्वरूप वायु के बहाव की प्रवणता (gradient) कम या अधिक हो सकती है । 15 किमी० प्रति घण्टा से अधिक वेग पर वायु निश्चित रूप से क्षरणशील हो सकती है ।

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वायु द्वारा मृदा क्षरण (wind erosion in hindi) क्या हैं यह कितने प्रकार से होता हैं

वायु द्वारा भूमि क्षरण (wind erosion in hindi) में तीन अवस्थायें होती हैं -

  • भूमि कणों के संचलन का उपक्रमण ( Initiation of movement ) के कारण आरम्भ होता है । मृदा कणों का संचलन वायु के वेग और विक्षोभ
  • वायु द्वारा कणों का बहाव ( Transport of particles by air )
  • कणों का जमाव ( Deposition of soil particles ) वायु वेग मन्द होने पर ।


वायु द्वारा क्षरण कितने प्रकार से होता हैं | types of wind erosion in hindi

वायु द्वारा मृदा संचलन की क्रिया तीन रूपों में होती है —

  • निलम्बन ( Suspension ) - मिट्टी के अत्यन्त सूक्ष्म कण (प्रायः 0.1 मिमी० व्यास से कम) इस अवस्था में संचलित होते हैं । ये कण वायु तरंगों में अधिक दूरी तक निलम्बन अवस्था (suspension) में परिवहित होते रहते हैं । मृदा कण 3% से 30% निलम्बन के रूप संचलित होते हैं ।
  • उत्पतन ( Saltation ) — इस रूप में सर्वाधिक मात्रा में कण संचलित होते हैं । उत्पतित कणों का (व्यास 0.05 मिमी ० से लेकर 0.5 मिमी०) तक हो सकता है । वायु वेग तथा दाब द्वारा एवं संचलनशील कणों के आपसी टकराव के कारण कणों का ऊपर की ओर उच्छलन होता है । उत्पतन की क्रिया में मृदा कण गुच्छों की शृंखलाओं के रूप में आगे परिवहित होते हैं । ऐसा ज्ञात हुआ है कि 55% से 62% मृदा कण उत्पतन के रूप में संचलित होते हैं ।
  • पृष्ठ सर्पण ( Surface creep ) – 0.5 मिमी० से बड़े कण सामान्य वायु द्वारा उत्थापित नहीं हो पाते फलतः पृष्ठ (सतह) पर लुढ़कते हुए गति करते हैं । इस क्रिया को पृष्ठ सर्पण कहते हैं । मृदा कण 7% से 25% पृष्ठ सर्पण के रूप में संचलित होते हैं ।


वायु द्वारा मृदा क्षरण के नियंत्रण कैसे करें?

वायु क्षरण को नियंत्रित या कम करने के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं -

  • प्रारम्भिक एवं द्वितीयक भूपरिष्करण क्रियाओं द्वारा भूमि पृष्ठ को रुक्ष (rough) तथा ढेलेदार बनाना चाहिये । इसी प्रकार छोटे - छोटे मेंड़ वायु के बहने की दिशा के विपरीत बनाये जायें । इससे वायु की गति में बाधा उत्पन्न होती है ।
  • हवा के बहने के विपरीत दिशा में लम्बी बढ़ने वाली फसलों को व कम बढ़ने वाली फसलों को एकान्तर पट्टियों में उगाना (wind strip cropping) चाहिये ।
  • खेतों को परती नहीं छोड़ना चाहिये ।
  • भूमि पर वनस्पतियों के अवशेष के माध्यम से आच्छादन प्रदान करना । यह वायु द्वारा मृदा क्षरण को रोकने में बहुत उपयुक्त होता है । गेहूँ, मक्का, ज्वार, आदि के तनों को आच्छादन के रूप में प्रयोग करने पर बहुत लाभकारी प्रभाव होता है ।
  • भूमि पर घनी व निकट बोई जाने वाली फसलें उगाई जायें । घासें भी उगा सकते हैं ।
  • वर्षा के पानी की अधिकतम मात्रा संचित करने के लिये समोच्च मेड़बन्दी, समतलीकरण, अवचूषण वेदिकायें व समोच्च खेती की विधियाँ अपनानी चाहिये ।
  • फसल उत्पादन के लिये उचित फसल चक्र का प्रयोग करें जिसमें दलहनी फसलें व घासें सम्मिलित हों ।
  • जीवांश वाली खादों का प्रयोग करना चाहिये ।
  • फसलों की बुवाई पंक्तियों में की जाये तथा पंक्तियाँ वायु के विपरीत दिशा में हों ।
  • फसलों की सुरक्षा तथा भूमि संरक्षण करने के लिये रक्षा पेटियाँ लगानी चाहिए ।

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