ग्वार की खेती कैसे की जाती है पूरी जानकारी | gwar ki kheti kaise kare?

  • ग्वार का वानस्पतिक नाम (Botanical Name) - Cyamopsis tetragonoloba L.
  • ग्वार का कुल (Family) - (Leguminoceae)
  • गुणसूत्र संख्या - 2n = 22

दहलन एवं चारे के लिए भारत में ग्वार की खेती (gwar ki kheti) काफी प्रचलित है, उसके अलावा यह एक बहुउपयोगी फसल है ।

ग्वार की खेती (gwar ki kheti) खरीफ के मौसम में उगाये जाने वाली एक दहलनी फसल है, जिसे चारे के रूप में भी उपयोग किया जाता है ।

यद्यपि ग्वार की फसल (gwar ki fasal) मुख्य रूप से चारे के लिए उगाई जाती है इसका उपयोग अन्य अनेक रूपों में किया जाता है । भारत में ग्वार की खेती सबसे ज्यादा राजस्थान राज्य में की जाती है ।


ग्वार की खेती चारे अथवा दाने दोनों के लिए की जाती है -

भारत में ग्वार की खेती (gwar ki kheti) चारे या दाने के उद्देश्य से मुख्यनः खरीफ के मौसम में उगाई जाती है ।

सिंचाई की सुविधायें होने पर ग्वार की फसल (gwar ki fasal) की बुवाई मार्च माह से प्रारम्भ कर जौलाई तक कर सकते हैं ।


ग्वार का उपयोग एवं आर्थिक महत्व

ग्वार एक बहुउपयोगी फसल है, जो चारे एवं दने दोनों के लिए उपयोग की जाती है ।

ग्वार का उपयोग एवं महत्व निम्न रूपों में किया जाता है -

  • इसके दानों में प्रोटीन 32%, तेल 7%, खनिज लवण 4% के लगभग पाया जाता है । इसके अतिरिक्त इनमें 32% तक गोंद भी पाया जाता है । 
  • इसका दाना एक बहुत ही पौष्टिक आहार भी है । इसे पशुओं के राशन के रूप में बहुतायत से प्रयोग किया जाता है ।
  • ग्वार की फलियाँ सीधे हरी सब्जी के रूप में प्रयोग की जाती है ।
  • ग्वार की फसल (gwar ki fasal) मुख्यतः हरे चारे के लिए उगाई जाती है । इसके चारे से पशुओं के लिए हे व साइलेज (hay & silage) भी तैयार किया जाता है ।
  • हरी खाद के रूप में प्रयोग करने के लिए भी ग्वार की खेती की जाती है । इसके उगाने से मृदा के भौतिक गुणों में सुधार होता है ।
  • यह एक दलहनी फसल होने के कारण भूमि में नाइट्रोजन संचित करने का कार्य भी करती है ।
  • मिश्रित खेती के रूप में ग्वार को उगाने से अन्य फसल की वानस्पतिक वृद्धि एवं उपज भी अधिक होती है ।
  • ग्वार सूखे के प्रति अन्य फसलों की तुलना में बहुत अधिक सहनशील होती है अतः शुष्क क्षेत्रों में इसकी खेती अधिक होती है ।
  • दवाइयों के निर्माण में भी इसका प्रयोग किया जाता है ।
  • भारत ग्वार का गोंद तथा अन्य उत्पादों का विश्व में निर्यात करने वाला अग्रणी देश है । इससे भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है ।


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ग्वार गम का उपयोग

ग्वार गम का उपयोग विभिन्न उद्योगों जैसे- कागज उद्योगं, कपड़ा उद्योग व सौन्दर्य प्रसाधन आदि में प्रयोग में लाया जाता है ।


ग्वार क्या काम आता है?

भारत में ग्वार की फसल (gwar ki fasal) प्राय: चारे के लिए काम में लायी जाती है, इससे हे एवं साईलेज भी तैयार किया जाता है ।

चारे के अतिरिक्त ग्वार की फालियों को सीधे सब्जी के रूप में भी उपयोग किया जाता है, यह एक पौष्टिक आहार के काम भी आता है । साथ ही ग्वार के दानो को पशुओं के राशन के काम में भी लिया जाता है ।


ग्वार का उत्पत्ति स्थान एवं इतिहास

ववीलोव के अनुसार भारत में ग्वार की खेती (gwar ki kheti) प्राचीनकाल से होती आ रही है । अतः ग्वार का उत्पत्ति स्थल भारत को ही माना जाता है ।

अधिकतर विद्वानों के अनुसार ग्वार की खेती (gwar ki kheti) भारत में प्राचीनकाल से ही सब्जी व चारे के लिए शुष्क क्षेत्रों में की जाती है । परन्तु कुछ अन्य विद्वानों के मतानुसार अफ्रीका में भी ग्वार की खेती (gwar ki kheti) पहले से ही होती है और वहीं इसका उत्पत्ति स्थान है ।


ग्वार का भौगोलिक वितरण

भारत तथा अफ्रीका में ग्वार की खेती (gwar ki kheti) करने वाले प्रमुख क्षेत्र हैं । भारत में ग्वार की खेती करने वाले राज्यों में राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश आदि है ।

भारत में ग्वार की फसल (gwar ki fasal) के उत्पाद बड़ी मात्रा में विश्व के अन्य प्रमुख देशों को निर्यात किये जाते हैं ।


ग्वार का वानस्पतिक विवरण

ग्वार का पौधा दलहन वर्ग के अन्तर्गत आता है, इसका पौधा सीधा बढ़ने वाला होता है । पौधे की लम्बाई 100 से 140 सेमी. तक होती है, कभी - कभी इससे भी अधिक लम्बाई के पौधे पाये जाते है ।

पौधों में मूसला जड़ तन्त्र (Tap Toot system) पाया जाता है । इसके पौधों पर लगने वाले फल बैंगनी रंग के होते है, इसकी फलियाँ चपटी तथा गुच्छों में होती हैं । ग्वार की फलियाँ सब्जी बनाने के काम आती हैइसकी प्रत्येक फली में लगभग 10 बीज पाये जाते हैं ।


ग्वार की खेती के लिए उचित जलवायु

ग्वार का पौधा सूखे के प्रति बहुत अधिक सहनशील होता है । ग्वार की फसल (gwar ki fasal) के लिए केवल 300-400 मिमी, वर्षा की आवश्यकता होती है ।

यह शुष्क तथा अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगने वाली फसल है । ग्वार के पौधों की वृद्धि के लिए 25-30°C तापमान उपयुक्त रहता है । भूमि में अधिक पानी भरने से ग्वार के पौधों को हानि होती है । खरीफ के मौसम में इस फसल को उगाने से पौधों पर फल व बीज बनते हैं ।


ग्वार की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

ग्वार की फसल विभिन्न प्रकार की भूमियों में उगाई जा सकती है, परन्तु ग्वार की खेती (gwar ki kheti) के लिए दोमट व बलुई दोमट भूमि अधिक उपयुक्त होती है ।

भूमि में जल का उचित प्रबन्ध होना आवश्यक है । भूमि का pH मान 7 से 8 के बीच होना चाहिये । ग्वार की खेती के लिए अधिक अम्लता व क्षारीयता दोनों ही हानिकारक है ।


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ग्वार की खेती कैसे करें? | gwar ki kheti kaise kare?

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ग्वार की उन्नत किस्में बताएं?


ग्वार की चारे तथा सब्जी के लिए उगाये जाने वाली जातियों के नाम निम्न प्रकार है -

  • ग्वार की चारे व दाने वाली किस्में - ग्वार - No. 3, डी ० -111, डी -128, अगेता ग्वारा -111, दुर्गापुरी सफेद ।
  • ग्वार की सब्जी वाली किस्में - पूसा सदाबहार, पूसा मौसम व पूसा नौबहार ।


ग्वार की खेती में अपनाए जाने वाले फसल चक्र

शुष्क क्षेत्रों में ग्वार की फसल बाजरा, मोठ व तिल आदि के साथ मिलाकर उगाई जाती है, जबकि फसल चक्रों में ग्वार की फसल (gwar ki fasal) गेहूँ और चना के साथ सम्मिलित की जाती है ।

मिलवाँ खेती के लिए सिंचित व असिंचित क्षेत्रों में अपनाये जाने वाले प्रमुख फसल चक्र निम्न प्रकार है -

  • बाजरा + ग्वार - बरसीम ( एकवर्षीय )
  • ज्वार + वार - बरसीम ( एकवर्षीय )
  • ग्वार - बरसीम ( एकवर्षीय )


ग्वार की खेती के लिए भूमि का चुनाव

ग्वार की फसल के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है । भूमि का pH मान 7.5 से 8-5 के बीच होना चाहिये । भूमि में जल निकास की सम्पूर्ण व्यवस्था होनी चाहिये ।

ग्वार के खेत में पानी खड़ा रहना फसल के लिए हानिकारक है । ग्वार की खेती के लिए अम्लीय और लवणीय व क्षारीय भूमियों भी उपयुक्त नहीं होती हैं ।

जलमग्नता भी इस फसल के लिए हानिकारक हैजबकि बहुत अधिक सूखे को भी यह सहन कर लेती है । इसी कारण से यह राजस्थान के रेतीले क्षेत्रों में उगने की क्षमता रखती है ।


ग्वार की खेती के लिए भूमि की तैयारी कैसे करें?

ग्वार की फसल के लिए चुनाव की गई भूमि की तैयारी की विशेष आवश्यकता नहीं होती है । फिर भी मिट्टी को बारीक करने के लिए एक दो बार खेत की जुताई कर तथा हैरो चलाकर मिट्टी महीन व बुवाई के लिए तैयार हो जाती है ।


ग्वार की खेती का समय

ग्वार की फसल की बुवाई वर्षा के प्रारम्भ होने पर निर्भर करती है । इसका कारण यह एक असिंचित फसल है और ग्वार की खेती (gwar ki kheti) वर्षा पर निर्भर करती है फिर भी असिंचित क्षेत्रों में इसकी बुवाई जौलाई के तीसरे सप्ताह तक अवश्य कर लेनी चाहिये । सिंचित अवस्थाओं में यह फसल मार्च से जौलाई तक कभी भी बोई जा सकती है ।


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ग्वार की फसल की बुवाई की विधि

चारे के लिए बोई गई फसल की बुवाई छिटकवाँ विधि से की जाती है । दाने व सब्जी के लिए बोई गई फसल की बुवाई हल के पीछे कुंडों में या सीडड्रिल द्वारा की जाती है ।


ग्वार की बीज दर कितनी होती है?

ग्वार की दाने के लिए उगाई गई फसल के लिए 25 किया. बीज/है० पर्याप्त होता है । चारे की फसल के लिए बीज की मात्रा 40 किग्रा./ है ।


ग्वार में बीज का उपचार

इस फसल के एक किग्रा. बीज को थायराम या कैपटान की 2 ग्राम मात्रा से उपचारित करके बुवाई करनी चाहिये ।


ग्वार में राजोबियम कल्चर का प्रयोग

यह एक दलहनी फसल होने के कारण इसके पौधे की जड़ों में गाँठे होती हैं जिसमें जीवाणु वायुमण्डल की नाइट्रोजन को संचित करते है ।

अतः बीज को राजोबियम कल्चर से उपचारित करके उसकी बुवाई करनी चाहिये । ऐसा करने से जीवाणु सक्रिय रहते है, और वायुमण्डल की नाइट्रोजन को संचित करने का कार्य करते हैं ।


ग्वार की खेती के लिए आवश्यक खाद एवं उर्वरक

ग्वार एक दलहनी फसल होने के कारण इसके लिए नाइट्रोजन की विशेष आवश्यकता नहीं होती, लेकिन पौधे की जड़ों में गाँठों की संख्या बढ़ाने के लिए फास्फोरस एवं पोटाश का प्रयोग करना चाहिये । फसल की बुवाई के समय 50 किग्रा. फास्फोरस/है. की दर से प्रयोग करना चाहिये ।

इसके अतिरिक्त 15-2 किग्रा. नाइट्रोजन व गोबर की सड़ी हुई खाद 20 टन/है. की दर से प्रयोग करनी चाहिये । नाइट्रोजन की यह मात्रा बुवाई के समय और गोबर की खाद बुवाई के एक माह पूर्व खेत में मिला देनी चाहिये ।


ग्वार की खेती में आवश्यक सिंचाई

वर्षा ऋतु में बोई गई फसल के लिए सिंचाई जल की आवश्यकता नहीं होती है । ग्रीष्मकालीन फसल में सिंचाई आवश्यक होती है ।

फसल की बुवाई के लिए प्रथम सिंचाई पलेवा के रूप में की जाती है । इसके पश्चात् यदि वर्षा न हो तो फसल को दो तीन सिंचाइयों की आवश्यकता होती है । ग्वार की फसल की सिंचाई की क्रान्तिक अवस्थायें बुवाई के 20-25 दिन बाद बीजांकुर अवस्था व अधिकतम वृद्धि के समय की अवस्था होती है ।


ग्वार की फसल में लगने वाले खरपतवार एवं उनका नियन्त्रण

ग्वार की फसल भारत में चारे या दाने के उद्देश्य से मुख्यनः खरीफ के मौसम में उगाई जाती है । सिंचाई की सुविधायें होने पर ग्वार की फसल की बुवाई मार्च माह से प्रारम्भ कर जौलाई तक कर सकते है ।

ग्वार की फसल में पाये जाने वाले प्रमुख खरपतवारों में मौथा, दूब, जंगली जूट व बरू आदि होते हैं ।


ग्वार में खरपतवार नाशक दवा

खेत की एक निराई बुवाई के एक माह बाद कर देनी चाहिये । इन खरपतवारों को खरपतवारनाशी के प्रयोग से भी नयन्त्रित किया जा सकता है ।

एक हैक्टेयर खेत के लिए बैसालीन की एक किग्रा० (सक्रिय तत्व) की मात्रा 1000 ली. जल में घोल बनाकर बुवाई से पूर्व खेत में छिड़काव करनी वाहिये ।


ग्वार के रोग एव उनका नियंत्रण


ग्वार की खेती में लगने वाले रोग एव उनका नियंत्रण निम्नलिखित है -

  • बैक्टीरियल ब्लाइट - यह ग्वार की फसल की एक प्रमुख बीमारी है । इस पर नियन्त्रण के लिए - रोगरोधी किस्मों को उगाना चाहिये ।
  • जड़ गलन - इस बीमारी से तना गल जाता है और पौधे की जड़ें भी गहरी काली होकर गल जाती हैं । इसके नियन्त्रण हेतु - डाइथेन Z - 78 का प्रयोग करना चाहिये । इस फसल को हानि करने वाले कीटों में एफीड, बिहार पत्ती छेदक आदि क्षति करते रहते है इनको नियन्त्रित करना आवश्यक है ।


ग्वार की फसल कितने दिन में तैयार हो जाती है?

ग्वार की फसल बुवाई के 60-90 दिन पश्चात् कटाई हेतु तैयार हो जाती है ।


ग्वार की खेती से प्राप्त उपज

ग्वार की फसल से 10-15 क्विटल दाना या 50-60 क्विटल सब्जी के लिए फलियाँ या 200 क्विटल के लगभग हरा चारा/है. तक प्राप्त हो जाता है ।


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