अरहर/तुवर की दाल की खेती कैसे करें? | tuvar/arhar ki kheti kaise kare?

  • अरहर का वानस्पतिक नाम (Botanical Name) - केजेनस केजन (Cajanus cajan L.)
  • अरहर का कुल (Family) - लेग्यूमिनेसी (Laguminoceae)
  • अरहर में गुणसूत्र संख्या - 2n = 22

भारत में दलहनी फसलों में चने के बाद अरहर की खेती (arhar ki kheti) सर्वाधिक की जाने वाली फसल है । भारत में अरहर को तुवर की खेती (tuvar ki kheti) के नाम से भी जाना जाता है ।

अरहर/तुवर की दाल को भोजन के रूप में प्रयोग करने के अतिरिक्त इसकी हरी फलियों की भी सब्जी बनाई जाती है ।

देश के पूर्वोत्तर राज्यों में अरहर की दाल (arhar ki daal) भोजन का मुख्य भाग होती है । फलियों, दाल के छिलकों व अवशेषों का प्रयोग पशुओं के लिये राशन के रूप में किया जाता है । इसकी सूखी लकड़ियाँ ईधन व छप्पर बनाने के काम आती हैं ।

अरहर के पौधे मृदा संरक्षक तथा भूमि को उर्वर बनाने का कार्य भी करते हैं अरहर की फसल (arhar ki fasal) गहरी जड़ों वाली होने के कारण भूमि की निचली परतों को खोलकर उसमें वायु संचार को बढ़ाती है जिससे मृदा की उर्वरता बढ़ती है ।


अरहर का वानस्पतिक विवरण

अरहर का वैज्ञानिक नाम केजेनस केजन एवं यह लेग्यूमिनेसी कुल का पौधा होता है ।

अरहर का पौधा सीधा, झाड़ीनुमा तथा 1 से लगभग 3 मी० की ऊँचाई वाला होता है । अरहर के पौधे में प्राथमिक जड़ों के बाद मूसला जड़ें बनती हैं जिसके कारण पौधों में सूखा सहन करने का गुण भी पाया जाता है । इसके प्रत्येक भाग का उपयोग किसी न किसी रूप में कर लिया जाता है ।


अरहर का उत्पादन एवं उत्पत्ति स्थान

विश्व की लगभग 85% अरहर का उत्पादन भारत में होता है तथा अरहर का मूल स्थान भी भारत ही है ।

वर्तमान में लगभग 2.5 मिलियन टन अरहर का उत्पादन भारत में होता है । भारत में यह मुख्यतः महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक तथा गुजरात आदि राज्यों में उगाई जाती है ।


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अरहर की उन्नत खेती कैसे करें? | Arhar ki kheti kaise kare?

अरहर भारत की एक प्रमुख दलहनी फसल (dalhani fasal) है । यह भारत के पूर्वी राज्य में अरहर की खेती (arhar ki kheti) विशेष रूप से की जाती है । अरहर के पौधे के सभी भाग किसी न किसी रूप में प्रयोग में लाये जाते हैं ।

इसके पौधे की हरी पत्तियाँ व टहनियाँ पशुओं को हरे चारे के रूप में खिलाई जाती हैं । फलियाँ सब्जी बनाने के लिये प्रयोग में लाई जाती हैं । इसके पौधों की कटाई के बाद उन्हें सुखाकर छप्पर आदि बनाने के काम में लाया जाता है ।

इसकी फलियों के छिलके व अन्य अवशेष पशुओं के लिये राशन में प्रयोग किये जाते हैं । अरहर के पौधों की पत्तियाँ हरी खाद के लिये प्रयोग में लाई जाती हैं । अरहर का पौधा एक अवरोधक का कार्य करने के कारण भूमि कटाव को रोकता है । इसके पौधों की जड़ें भूमि में गहराई तक जाती हैं ।

गहराई में जाने के कारण इसकी जड़ें नीचे की परतों को खोलने का कार्य करती हैं जिससे पौधों को पोषक तत्व व पर्याप्त मात्रा में नमी भी प्राप्त होती है । भारत के लगभग प्रत्येक राज्य में अरहर की खेती (arhar ki kheti) की जाती है ।


अरहर की खेती के लिए उचित जलवायु

अरहर एक आर्द्र व शुष्क क्षेत्रों में उगाये जाने वाली फसल है । सूखे क्षेत्रों में इस फसल को उगाने के लिये सिंचाई पर निर्भर करना पड़ता है । पौधों की वृद्धि एवं विकास के लिये नम वातावरण उपयुक्त रहता है ।

फूल आने व फसल के पकने के समय चमकीली धूप की आवश्यकता होती है । फूल आने के समय पाला व बादलों वाला मौसम तथा अधिक वर्षा फसल को हानि करती है ।


अरहर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

अरहर की फसल (arhar ki fasal) की खेती लगभग सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है । बलुई दोमट से मटियार दोमट, उर्वर व उत्तम जल निकास युक्त भूमियों में अरहर की खेती करना उचित रहता है ।


अरहर/तुवर की दाल की खेती कैसे की जाती है पूरी जानकारी?

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अरहर की खेती के लिए भूमि की तैयारी कैसे करें?

इस फसल को उगाने के लिये मई - जून के महीनों में मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करनी चाहिये । तत्पश्चात् दो बार हैरो चलाकर खेत की मिट्टी को बारीक कर लेते हैं ।


अरहर की खेती के लिए भूमि को समतल करना

अरहर की खेती (arhar ki kheti) के लिये भूमि का समतल होना आवश्यक है । खेत में पानी खड़ा रहने से फसल को हानि होती है । अत: असमतल खेत को हल्का सा ढाल देते हुये समतल कर लेना चाहिये ।


भूमि का उपचार

भूमि में दीमक व अन्य कीटों को नष्ट करने के लिये BHC dust का प्रयोग अन्तिम जुताई के समय करना चाहिये ।1


अरहर की खेती के लिए उपयुक्त किस्मों का चुनाव

अरहर की अधिक उपज देने वाली व कम समय में पकने वाली विभिन्न जातियों में से किसी एक उपयुक्त जाति का चुनाव कर बुवाई की जा सकती है ।

अरहर की फसल कि, ये जातियाँ 120 से 160 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं । इसी कारण से अरहर को बहुफसली फसल चक्रों में गेहूँ तथा अन्य फसलों के साथ उगाया जाता है ।


अरहर की प्रमुख किस्में -

  • टाइप -21
  • यू० पी० ए० -120
  • प्रभाव
  • राज -60
  • शारदा
  • मुक्ता
  • पूसा -94
  • पूसा 74 व बहार ।


अरहर की संकर किस्में

इस फसल की कम समय में पकने वाली संकर जातियाँ भी विकसित हो चुकी हैं जैसे - 

  • COH - 1
  • COH - 2
  • PPH - 4


अरहर की खेती कब की जाती है?

अगेती जातियों की बुवाई अप्रैल में की जा सकती है । सिंचित क्षेत्रों में मध्य जून में व देरी से बुवाई की गई फसल का समय 15 जुलाई तक रहता है ।


अरहर के बीज का उपचार

बुवाई के समय बीज को दो ग्राम थायराम/किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिये । अरहर के बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना भी आवश्यक होता है ।

अरहर की फसल (arhar ki fasal) की खेत में प्रथम बार बुवाई करने पर कल्चर का प्रयोग बहुत ही आवश्यक है ।


अरहर की बीज की दर कितनी होती है?

एक हैक्टेयर खेत की बुवाई के लिये 12-15 किग्रा. बीज पर्याप्त होता है ।


पौधों की संख्या

उपरोक्त बीज दर का प्रयोग करने पर एक हैक्टेयर खेत में 50 से 60 हजार तक पौधों की संख्या होती है ।


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अरहर की बुवाई की विधियां

अरहर की फसल (arhar ki fasal) की बुवाई छिटकवां विधि से व पंक्तियों में की जाती है ।

मिलवां खेती हेतु अरहर की फसल को पंक्तियों में बोया जाता है ।

पंक्तियों में बुवाई देसी हल के पीछे कूडों में की जाती है ।


अरहर की फसल में अन्तरण

कम समय में पहले पकने वाली जातियों की बुवाई में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 50-60 सेमी. व पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी० रखनी चाहिये ।


विरलीकरण

बुवाई के 20-25 दिन बाद पौधों की अधिक संख्या को कम कर या अवांछित पौधों को उखाड़कर निकाल देना चाहिये ।


अरहर की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक की मात्रा

अरहर एक दलहनी फसल है । इसके पौधे वायुमण्डल की नाइट्रोजन को अपनी जड़ों में एकत्रित कर अपनी नाइट्रोजन सम्बन्धी आवश्यकता की पूर्ति कर लेते हैं । फिर भी बुवाई के समय 20 किलो नाइट्रोजन प्रति है० की दर से प्रयोग करना चाहिये ।

फास्फोरस व पोटाश युक्त उर्वरकों का प्रयोग भूमि परीक्षण के आधार पर किया जाता है । यदि परीक्षण की सुविधा न हो तो 60 किग्रा० फास्फोरस व 40 कि. पोटाश/है० की दर से बुवाई के समय प्रत्येक पंक्ति से 5 सेमी. की दूरी पर 5 सेमी की गहराई पर डालने चाहिये ।


अरहर की फसल में आवश्यक सिंचाई

अरहर की फसल (arhar ki fasal) की जलमांग 50-150 मिमी. है । 15 जून के आस - पास बोई गई फसल में वर्षा प्रारम्भ होने से पूर्व एक या दो सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है ।

फलियाँ आने के पहले व बाद होने पर भूमि में नमी बनाये रखने के लिये एक या दो सिंचाइयाँ की जा सकती हैं । खेत से अतिरिक्त जल की निकासी की व्यवस्था होना आवश्यक है । जलभराव वाले खेतों में मेंड़ पर बुवाई करने से अधिक उपज मिलती है ।


अरहर की खेती में निराई - गुड़ाई

अरहर की फसल की बुवाई के एक माह बाद खेत में निराई करनी चाहिये, क्योंकि प्रारम्भ से ही खरपतवार फसल को हानि पहुँचाने लगते हैं । डेढ़ माह बाद दूसरी निराई आवश्यक है ।


अरहर की खेती में लगने वाले खरपतवार एवं उनका नियन्त्रण

खरतपवारों पर नियन्त्रण करने के लिये - पेंडीमेथालिन 30 EC की 3 ली. या लासो की 4 ली. मात्रा को 800-1000 ली. पानी में घोलकर बुवाई के बाद पाटा लगाकर अंकुरण से पूर्व छिड़काव करना चाहिये ।


अरहर की फसल का स्वास्थ्य

अरहर की फसल को विभिन्न बीमारियों जैसे अरहर का उकठा रोग व बंझा रोग तथा हानि करने वाले कीटों जैसे फलीछेदक, पत्ती लपेटकर व अरहर की फली मक्खी आदि से बचाना आवश्यक है । इन रोगों एवं कीटों पर नियन्त्रण के लिये उपयुक्त उपचार व उपाय अपनाने चाहिये ।


अरहर की फसल की कटाई

जब पौधों पर लगी 70% फलियाँ सूख जायें तो फसल की कटाई गंडासे की सहायता से की जाती है ।


तुवर/अरहर की दाल का छिलका कैसे निकालें?

लकड़ी के डंडे की सहायता से पौधों को सुखाने के पश्चात् पीटकर फलियों को अलग कर लेते हैं । फलियों की मढ़ाई कर दाना अलग कर लिया जाता है ।


अरहर की खेती से प्राप्त उपज

उन्नत कृषि विधियों को अपनाकर अरहर की 20 से 25 क्विटल उपज/है० तक प्राप्त हो सकती है जबकि 50-60 क्विटल/है० सूखी लकड़ी भी मिलती है ।

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