मक्का के विभिन्न प्रकारों का वर्गीकरण एवं प्रमुख किस्में ओर उनकी विशेषताएं व महत्व

आज के समय में विश्व लगभग इन देशों में रूस, रूमानिया, ब्राजील, संयुक्त राज्य अमेरिका, अर्जेन्टाइना, चीन एवं भारत आदि में मक्का के विभिन्न प्रकार (types of maize in hindi) जैसे- देसी मक्का, संकर मक्का एवं संकुल मक्का की खेती सफलतापूर्वक की जा रही है ।

भारत के भी लगभग सभी राज्यों में मक्का की तीन प्रकार की किस्में देसी मक्का, संकर मक्का एवं संकुल मक्का उगाई जाती है । 

परंतु मक्का का वर्गीकरण (classification of maize in hindiउसके किस्मों के आधार पर न करके मक्का के दानों के आधार पर किया जाता है ।


मक्का कितने प्रकार की होती है?

मक्का का वनस्पति नाम जिया मेज़ (Zea mays L.) है,है, एवं यह ग्रेमिनी या पोएसी  (Gramineae) कुल के अंतर्गत आता है यह एकवर्षीय पौधा होता है ।

मक्का के दाने एकबीजीय होते हैं । मक्का का पौधा बड़े आकार वाला होता है, जिस पर दो प्रकार का पुष्पक्रम पाया जाता है ।


भारत में मुख्यत: तीन प्रकार की मक्का की किस्में पाई जाती है -

  • देशी मक्का (Desi Maize)
  • संकर मक्का (Hybrid Maize)
  • संकुल मक्का (Composiye Maize)


मक्का का वर्गीकरण | classification of maize in hindi 

मक्का का वर्गीकरण -

  • डेन्ट कार्न (Zea mays indentata)
  • पाप कार्न (Zea mays everta)
  • पोड कार्न (Zea mays tunicata)
  • वैक्सी कार्न (Zea mays ceratina)
  • साफ्ट कार्न (Zea mays amylacea)
  • फ्लीन्ट कार्न (Zea mays indurata)
  • स्वीट कार्न (Zea mays saccharata)
  • कार्न फ्लेक्स ( Corn flex )


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मक्का कितने प्रकार की होती है एवं मक्का का वर्गीकरण | Farming Study


दानों के आधार पर मक्का का वर्गीकरण -

1. डेन्ट कार्न ( Zea mays indentata ) -

इस प्रकार की मक्का में कठोर व नर्म दोनों प्रकार का स्टार्च पाया जाता है । यह मक्का सामान्यत: संयुक्त राज्य अमेरिका में उगाई जाती है । इसके दानों का रंग पीला व सफेद होता है ।


2. पाप कार्न ( Zea mays everta ) -

इसमें दानों का आकार बहुत छोटा होता है । इसका प्रयोग खील बनाने में किया जाता है । इस कार्न की पर्यटन स्थलों पर काफी माँग रहती है ।

पाप कार्न किसे कहते है - "यह एक विशेष प्रकार की मक्का है जिसके दाने कठोर तथा छोटे आकार वाले होते हैं । इसके दानों को घी में भूनने पर ये चटक की आवाज के साथ फूलकर बड़े हो जाते हैं, इन्हें खील कहते हैं ।"

नमक, मसालें मिलाने पर यह एक स्वादिष्ट अल्पाहार के रूप में खाने के लिये तैयार हो जाते हैं । अनेक पर्यटन स्थलों (Tourist spots) पर यात्री इन्हें बड़े चाव से खाते देखे जा सकते हैं ।


3. पोड कार्न ( Zea mays tunicata ) -

मक्का की खेती के प्रारम्भिक दिनों में इस वर्ग की मक्का पाई जाती थी । वर्तमान समय में इस मक्का का कोई महत्व नहीं है और न ही इसकी कहीं पर भी खेती की जाती है ।


4. वैक्सी कार्न ( Zea mays ceratina ) -

इस मक्का के दानों को तोड़ने पर उनमें से मोम निकलता है । इसके दानों का स्टार्च विभिन्न प्रकार के सामान को चिपकाने के लिये प्रयोग में लाया जाता है । इसे 'मोमी मक्का' भी कहते हैं ।


5. साफ्ट कार्न ( Zea mays amylacea ) -

इसके दाने नर्म व विभिन्न रंगों में होते हैं । दानों का इन्डोस्पर्म नर्म होता है । इस वर्ग की मक्का के दाने सामान्यत: नीले व सफेद रंगों में बहुतायत में होते हैं ।


6. फ्लीन्ट कार्न ( Zea mays indurata ) -

इस वर्ग की मक्का के दाने कड़े व चिकने होते हैं । इन दानों का आकार गोल होता है । सामान्यत: ये सफेद व पीले रंग में पाये जाते हैं । इस वर्ग की मक्का भारत में लगभग सभी राज्यों में उगाई जाती है ।


7. स्वीट कार्न ( Zea mays saccharata ) -

इस वर्ग की मक्का के दाने मीठे होते हैं । दानों को यदि पानी में डाल दिया जाये तो वे पानी को सोख लेते हैं । इसके पौधों पर लगने वलो भुट्टों को भुनकर जनता द्वारा प्रचुर मात्रा में खाया जाता है । इसका प्रमुख कारण भुट्टे में उपस्थित दानों का मीठा होना है ।


8. कार्न फ्लेक्स ( Corn flex ) -

यह मक्का का एक तैयार भोजन (readymade food) है, जो बाजार में विभिन्न ब्राण्ड्स (brands) में उपलब्ध है । यह नाश्ते में तथा रोगी व्यक्तियों के लिये एक उत्तम आहार है । 


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संकर/हाइब्रिड मक्का क्या है इसकी प्रमुख किस्में एवं विशेषताएं

मक्का की संकर किस्मों में मातृक एवं पैतृक दोनों ही गुणों का समावेश होता है ।

संकर के ओज के कारण संकर किस्में अपनी पैतृक पीढ़ी से अधिक ओजपूर्ण होती हैं और इनकी उपज क्षमता भी अधिक होती है । इनके पौधों में लम्बे, बेलनाकार भुट्टे पाये जाते हैं ।

संकर/हाइब्रिड मक्का एवं किसानों द्वारा इसे अस्वीकार करने के क्या कारण है, हाइब्रिड मक्का की किस्में, संकर मक्का एवं संकुल मक्का में क्या अंतर है,
संकर/हाइब्रिड मक्का क्या है इसकी प्रमुख किस्में एवं विशेषताएं

संकर/हाइब्रिड मक्का बीज

इन जातियों के बीज का आकार छोटा होता है व ये सस्ती होती हैं । संकर मक्का की बुवाई के लिये प्रतिवर्ष नया बीज खरीदना आवश्यक होता है ।

हाइब्रिड मक्का (hybrid makka) की जातियाँ खरीफ एवं रबी मौसम के लिये उपयुक्त हैं । इनके भुट्टों में नारंगी व पीले अर्द्धचकमक दाने पाये जाते हैं । यह बीज चारा उगाने के लिये प्रयोग किया जा सकता है ।


संकर/हाइब्रिड मक्का की किस्में

हाइब्रिड मक्का की किस्में अन्य या देसी किस्मों की तुलना इन की पैदावार अधिक होती है ।


हाइब्रिड मक्का की प्रमुख किस्में -

  • गंगा सफेद -2
  • गंगा -5
  • गंगा -9
  • डेकन
  • डेकन -103
  • हिमालयन -123
  • हिमालयन -128
  • हिस्टार्च
  • गंगा -4
  • गंगा -3
  • गंगा -101
  • पूसा अर्ली हाइब्रिड बी० एल -54 आदि ।


हाइब्रिड मक्का में सिंचाई की आवश्यकता

खरीफ ऋतु हाइब्रिड मक्का की खेती के लिये तीन सिंचाइयों (150 mm) तक जल की आवश्यकता होती है ।


हाइब्रिड मक्का की कटाई एवं उपज

ये जातियाँ देशी जातियों की तुलना में अधिक उपज देती हैं । हाइब्रिड मक्का (hybrid makka) की बुवाई से लेकर कटाई तक की सम्पूर्ण अवधि में 100 से 110 दिनों का समय लिया जाता है ।


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किसानों द्वारा संकर/हाइब्रिड मक्का को अस्वीकार करने के क्या कारण है?

संकर मक्का की खेती (hybrid makka ki kheti) के लिये प्रतिवर्ष नया बीज खरीदकर बुवाई करनी चाहिये ।

यह हाइब्रिड मक्का की खेती में एक दोष है, यही कारण है कि इन जातियों की लोकप्रियता किसानों के मध्य अधिक नहीं हो पाई है ।


भारत में संकर मक्का के अस्वीकार होने के कारण -

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कृषक प्रगतिशील हैं ।

यहाँ पर सघन खेती की जाती है, किसानों के पास छोटी - छोटी जोत है । इसमें वे खेती कर अधिकाधिक लाभ प्राप्त करना चाहते हैं ।

वर्तमान समय में मक्का की फसल (makka ki fasal) को उगाना आर्थिक दृष्टि से विशेष रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तुलनात्मक लाभकारी नहीं रहा है ।

यही कारण है कि किसानों द्वारा मत्स्का की फसल को अस्वीकार कर दिया गया है ।


इसके कुछ अन्य प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं -

  • संकर मक्का का बीज प्रतिवर्ष नया खरीदना पड़ता है ।
  • संकर मक्का का बीज महँगा होता है ।
  • अन्य फसलों की तुलना में मक्का के की हानि अधिक होती है ।
  • मक्का की फसल के लिये अधिक जल हानिकारक रहता है ।
  • किसानों की जोतें, छोटी हैं ।
  • मक्का के महत्व की जानकारी का अभाव है ।


संकर मक्का एवं संकुल मक्का में क्या अंतर है?

संकर मक्का (hybrid makka) एवं संकुल मक्का (composite makka) की निम्नलिखित विशेषताएं हैं जो इन्हें एक - दूसरे से अलग करती है ।


संकर/हाइब्रिड की प्रमुख विशेषताएं -

  • संकर जातियों की उत्पादन क्षमता अधिक होती है, परन्तु संकुल जातियों की अपेक्षा कम होती है ।
  • इनके पकने की अवधि 90 से 100 दिन तक होती है ।
  • इन जातियों में रोगों एवं कीटों को सहने की क्षमता कम होती है ।
  • किसानों को इन जातियों का प्रमाणित बीज प्रतिवर्ष नया खरीदकर बोना पड़ता है । इसी कारण से किसान अपनी फसल के दाने बीज के लिये प्रयोग नहीं कुर सकते ।
  • बार - बार महँगा बीज खरीदने से किसान को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है ।


संकुल मक्का की प्रमुख विशेषताएं -

  • इन जातियों की उत्पादन क्षमता संकर जातियों की अपेक्षाकृत कुछ अधिक होती है ।
  • इनके पकने की अवधि 100 से 110 दिन तक होती है ।
  • इन जातियों में रोगों को सहन करने का गुण पाया जाता है, अत: इनकी अनुकूलन क्षमता अधिक होती है ।
  • इन जातियों के बीज से उगी फसल के दाने को 3-4 वर्षों तक लगातार बीज के लिये प्रयोग में लाया जा सकता है ।
  • इन जातियों का बीज 3-4 वर्षों में एक बार खरीदने के कारण कम धन खर्च करना पड़ता है । 

मक्का की फसल का महत्व एवं उपयोग

मक्का की फसल (makka ki fasal) भारत की प्रमुख फसलों में से एक है, जिस की खेती लगभग संपूर्ण भारत में की जाती है ।

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में मक्का की फसल का उपयोग अनाज एवं मक्का के दानों को पशुओं को राशन के रूप में दिया जाता है ।

इसी के साथ शहरी क्षेत्रों में प्राय: मक्का की दानों का आटा व भुट्टों के रूप में उपयोग किया जाता है ।

मक्का की फसल का उपयोग औद्योगिक स्तर पर तेल, कागज, गोंद इत्यादि बनाने में किया जाता है ।

इसके अतिरिक्त भारत में मुख्यतः दो उद्देश्य के लिए मक्का की खेती (makka ki kheti) की जाती है ।

  • दाने के उपयोग हेतु मक्का की खेती
  • चारे के उपयोग हेतु मक्का की खेती


मक्का की फसल से दोहरा लाभ

भारत में मक्का की फसल (makka ki fasal) दाने, चारे एवं भुट्टों आदि के लिए उगाई जाती है ।

मक्का की फसल को दाने एवं चारे के उपयोग के लिए उगाने में अपनाए जाने वाली कृषि क्रियाओं में काफी भिन्नताएं होती है ।


दाने के उपयोग के लिए मक्का की खेती -

  • इसमें बीज की कम मात्रा (15-20 किग्रा./हैक्टेयर) का प्रयोग होता है ।
  • दाने की फसल के लिये अन्तरण अधिक होता है । पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सेमी व पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी . होती है ।
  • दाने की फसल की बुवाई पंक्तियों में की जाती है ।
  • इसमें पोषक तत्व (NPK) की मात्रा 120-150, 50-60 व 40-50 किलोग्राम/है. की दर से प्रयोग की जाती है ।
  • दाने की फसल में प्रारम्भिक वृद्धि के समय से ही निरन्तर 2-3 निराइयों की आवश्यकता होती है ।
  • इसमें उगे खरपतवारों को नियन्त्रित करने के लिये रसायनों का प्रायेग प्रभावकारी रहता है ।
  • कीटों एवं बीमारियों के प्रकोप से होने वाली हानि पर नियन्त्रण करने के लिये विभिन्न फफूंदीनाशक व अन्य रसायनों का प्रयोग लाभकारी रहता है ।
  • दाने की उपज 50-60 क्विटल/है. तक हो जाती है । भुट्टों के लिये उगाई गई फसल में 50-60 हजार भुट्टे प्रति हैक्टेयर प्राप्त होते हैं ।

इसके अतिरिक्त 70-80 क्विटल/है०, कड़वी (Straw) भी प्राप्त हो जाती है ।


चारे के उपयोग हेतु मक्का की खेती -

  • इसमें बीज दर 40-45 किग्रा/हैक्टेयर प्रयोग की जाती है ।
  • चारे की फसल में अन्तरण का कोई महत्व नहीं है ।
  • चारे की फसल की बुवाई छिटकवाँ विधि से की जाती है ।
  • इसमें NPK की कम मात्रा की आवश्यकता होती है और यह मात्रा 100-120 किलोग्राम नाइट्रोजन व 50-60 किग्रा/है. फास्फोरस की होती है ।
  • चारे की फसल में निराई की आवश्यकता नहीं होती ।
  • चारे की फसल प्रारम्भिक अवस्था से ही अच्छी वृद्धि करने के कारण खरपतवारों को दबा लेती है ।
  • चारे की फसल में कीटों एवं बीमारियों के प्रकोप की सम्भावना नहीं होती ।
  • चारे के लिये उगाई गई फसल से 300-400 क्विटल हरा चारा प्रति हैक्टेयर प्राप्त हो जाता है ।


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मक्का की फसल की उपयोगिता है

मक्का भारत की प्रमुख फसल है ।

मक्का की फसल की अधिक उपज देने की क्षमता के साथ - साथ इसका व्यापक औद्योगिक महत्व होने के कारण इसको एक 'चमत्कारिक फसल' (Miracle crop) या 'क्वीन ऑफ सीरियल्स' (Queen of Cereals) भी कहा जाता है ।


इसके शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में होने वाले उपयोग निम्न प्रकार है -

  • मक्का भारत की गरीब जनता का भोजन है । इसके दानों के आटे से रोटियाँ बनाई जाती हैं जिसे सभी लोगों द्वारा प्रयोग किया जाता है ।
  • इसके पौधों पर लगने वाले भुट्टों को लोग भूनकर भरपूर मात्रा में आनन्दपूर्वक खाते हैं ।
  • मक्का की फसल पशुओं के लिये हरे चारे व साइलेज के रूप में प्रयोग की जाती है । यह चारा दुधारू पशुओं को खिलाने से उनके दूध की मात्रा में वृद्धि होती है ।
  • मक्का के दोनों का उपयोग सुअरों व मुर्गियों के राशन के रूप में किया जाता है ।
  • मक्का के दानों से बहुत से तैयार खाद्य पदार्थ (ready made foods) का व्यंजन बाजार में उपलब्ध है ।
  • मक्का का औद्योगिक महत्व भी बहुत अधिक है । इसका प्रयोग मण्ड, एल्कोहल, ग्लूकोज, रेशम, कागज, लेई, गोंद, खाद्यान्न तेल, पैकिंग पदार्थ व मक्का के तेल की खली आदि बनाने में व्यापारिक स्तर पर किया जाता है ।
  • मक्का एक स्टार्चयुक्त फसल है । इसका स्टार्च कपड़ा, कागज, अभियन्त्रण व बैटरी आदि में भी प्रयोग किया जाता है ।

मक्का की फसल (makka ki fasal) की उपरोक्त अपार उपयोगिता को देखते हुये इसे एक 'चमत्कारिक फसल' (miracle crop) की संज्ञा दी जाती है ।

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