कुसुम की खेती कैसे की जाती है? | kusum ki kheti | Safflower in hindi

  • कुसुम का वानस्पतिक नाम (Botanical Name) - Carthamus tinctorius
  • कुसुम का कुल (Family) - कम्पोजिटी (compositae)
  • गुणसूत्र संख्या (Chromosomes) - 2n=

भारत में कुसुम की खेती (kusum ki kheti) मुख्यत: तेल के लिए की जाती है, कुसुम के बीजों में 24-36 प्रतिशत तेल पाया जाता है ।


कुसुम कोन सी फसल होती है?

कुसुम (safflower in hindi) विश्व की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है ।

कुसुम का तेल (safflower oil in hindi) मनुष्यों द्वारा खाने के प्रयोग में लाया जाता है । कुसुम के तेल में बहुअसन्तृप्त अम्लों की मात्रा 75 प्रतिशत तक पाई जाती है, इसमें मुख्य रूप से लिनोलिक अम्ल होता है । 

इसी कारण यह तेल हृदय रोगियों के लिये एक गुणकारी औषधि है । यह हृदय रक्त वाहिकाओं में कालेस्ट्राल का स्तर निम्न बनाये रखती है । अतः कुसुम का तेल (safflower oil in hindi) हृदय रोगियों के लिये विशेष रूप से उपयोगी है ।


कुसुम की खेती के फायदे?

कुसुम के तेल से डाई, साबुन व पेन्ट आदि उत्पाद भी बनाये जाते हैं । कुसुम की खली में लगभग 42% तक प्रोटीन पाई जाती है । यह पशुओं के लिये राशन के रूप में प्रयोग की जाती है ।


कुसुम का उत्पत्ति स्थान एवं इतिहास

कुसुम का उत्पत्ति स्थान भारत, पाकिस्तान व इसके आस - पास का क्षेत्र माना जाता है । यहीं से इसका प्रचार व प्रसार विश्व के अन्य देशों को हुआ ।

कुसुम का तेल (safflower oil in hindi) गुणवत्ता में सूरजमुखी के तेल से भी उत्तम माना जाता है । विश्व के कुसुम उत्पादक प्रमुख देशों में भारत, अमेरिका, कनाडा और इथोपिया आदि हैं ।


कुसुम का भागोलिक विवरण

विश्व में कुल लगभग 10 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल पर कुसुम की खेती (kusum ki kheti) की जाती है तथा इसका कुल उत्पादन लगभग 9 लाख टन है ।

वर्तमान समय में इसकी औसत उत्पादकता लगभग 9 क्विटल/हैक्टेयर है । भारत में लगभग 7.5 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल पर कुसुम की खेती (kusum ki kheti) की जाती है और इससे लगभग 4 लाख टन उत्पादन हो रहा है ।

भारत में कुसुम की खेती करने वाले प्रमुख राज्यों में महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश व गुजरात आदि हैं । सम्पूर्ण भारत में कुसुम (safflower in hindi) की औसत उत्पादकता लगभग 6 क्विटल/हैक्टेयर है ।


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कुसुम का वानस्पतिक विवरण

कुसुम का वानस्पतिक नाम Carthamus tinctorius है । यह 'कम्पोजिटी' (Compositae) परिवार से सम्बन्धित है ।

इसका पौधा एकवर्षीय एवं शाकीय होता है । पौधे की ऊँचाई 80 सेमी. से 180 सेमी. तक होती है । इसका तना शाखायुक्त एवं फैला हुआ होता है तथा इसमें मूसला जड़ प्रणाली पाया जाता है ।

अतः कुसुम (safflower in hindi) की जड़ें भूमि में गहराई तक जाकर पानी सोख लेती हैं । इसी कारण से यह फसल शुष्क क्षेत्रों के लिये अधिक अनुकूल है । मूलतः यह एक ठण्डी जलवायु की फसल है ।

इसके अंकुरण के लिये उपयुक्त तापक्रम लगभग 15°C है तथा पौधों की वृद्धि एवं बढ़वार के समय लगभग 24-28°C तापमान उचित रहता है । कुसुम की खेती (kusum ki kheti) 300 मिमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में सरलतापूर्वक की जा सकती है ।


कुसुम की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी


कुसुम की फसल (kusum ki fasal) विभिन्न प्रकार की भूमियों में उगाई जाती है । बलुई भूमि कुसुम की फसल के लिये अधिक अनुकूल होती है । 

भूमि का pH मान 6-5 से 8 के बीच उपयुक्त रहता है । अम्लीय मृदायें कुसुम की फसल की खेती के लिये उपयुक्त नहीं होती है । हल्की क्षारीयता को यह फसल सहन कर लेती है ।


कुसुम की खेती कैसे करें? | kusum ki kheti

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कुसुम की खेती के लिए भूमि की तैयारी कैसे करें?

खेती की तैयारी के लिये मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई की जाती है । खेत की मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिये 2-3 बार हैरो चलानी चाहिये । प्रत्येक जुताई या हैरो के पश्चात् भूमि में नमी संरक्षण हेतु पाटा लगाना आवश्यक होता है ।


कुसुम की खेती के लिए उपयुक्त जाति का चुनाव

कुसुम की अधिक उपज प्राप्त करने के लिये बुवाई का समय, क्षेत्र की जलवायु एवं मृदा को ध्यान में रखते हुये निम्न में से उपयुक्त जाति का चुनाव किया जा सकता है ।

कुसुम की प्रमुख किस्में -

  • TYPE - 56
  • तारा
  • NAG - 7
  • भीमा
  • K - 65
  • मालवीय -305
  • JSF - 1
  • JSF - 2 व ISF - 5 आदि ।


कुसुम की खेती में अपनाए जाने वाले फसल चक्र

खरीफ की फसलों जैसे - मक्का  ज्वार, बाजरा, कपास, लोबिया व उर्द आदि के बाद रबी के मौसम में कुसुम की फसल को फसल चक्र में सम्मिलित किया जा सकता है ।


कुसुम की फसल में मिलवां खेती

कुसुम की फसल को रबी के मौसम में उगाई जाने वाली अन्य फसलों जैसे - गेहूँ, जौ, चना व मसूर आदि के साथ मिलवां फसल के रूप में उगाया जाता है ।


कुसुम की खेती कब ओर कैसे की जाती है?

एक हैक्टेयर खेत की बुवाई के लिये कुसुम की फसल (kusum ki fasal) का 15-20 किग्रा० बीज पर्याप्त रहता है । बुवाई से पूर्व इस बीज को कैप्टान या थायराम की 3 ग्राम मात्रा से प्रति किग्रा० बीज की दर से उपचारित करना चाहिये ।

बीज की बुवाई 10 अक्टूबर से 10 नवम्बर तक करनी चाहिये । बीज की बुवाई पंक्तियों में करना लाभकारी रहता है । पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी. व पौधे से पौधे की दूरी 25 सेमी. रखनी चाहिये । बीज को 3-4 सेमी की गहराई पर बोना उपयुक्त रहता है ।


कुसुम की खेती के लिए आवश्यक खाद एवं उर्वरक की मात्रा

कुसुम की फसल (kusum ki fasal) के लिये बुवाई के एक माह पूर्व 15 टन सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर खेत की दर से डालनी चाहिये । 

कुसुम की उन्नत जातियों की खेती के लिये 60 किग्रा नाइट्रोजन, 40 किग्रा. फास्फोरस व 20 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग किया जाना चाहिये ।

कुल मात्रा का दो तिहाई नाइट्रोजन व सम्पूर्ण फास्फोरस तथा पोटाश बुवाई के समय प्रयोग करने चाहियें । नाइट्रोजन की शेष मात्रा बुवाई के 45 दिन बाद टाप - ड्रेसिंग (Top dressing) के रूप में प्रयोग करनी चाहिये ।


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कुसुम की खेती में आवश्यक सिंचाई

कुसुम (safflower in hindi) एक असिंचित क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसल है । इन क्षेत्रों में कुसुम की फसल की खेती वर्षा पर आधारित होती है । यदि सिंचाई जल उपलब्ध है तो बुवाई के 30 दिन बाद एक सिंचाई करनी चाहिये ।


कुसुम की फसल सुरक्षा

कुसुम की फसल (kusum ki fasal) को खरपतवार, रोग एवं कीट क्षति पहुँचाते रहते हैं । अतः समय रहते इन पर नियन्त्रण करना आवश्यक है ।


( i ) कुसुम की फसाल में लगने वाले खरपतवार एवं उनका नियन्त्रण

कुसुम की फसल की बुवाई के 25-30 दिन बाद खुरपी की सहायता से एक निराई करनी चाहिये और फसल के पौधों को उचित दूरी पर खुरपी द्वारा सुनिश्चित कर देना चाहिये ।


( ii ) कुसुम की फसल में लगने वाले रोग एवं उनका नियन्त्रण

कुसुम की फसल में गेरूई (rust) रोग व म्लानी (wilt) रोग आदि प्रमुख हैं ।

इन पर नियन्त्रण के लिये - डाइथेन M - 45 की 2 किग्रा० मात्रा 1000 लीटर जल में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर तीन बार फसल पर छिड़काव करना चाहिये ।


( iii ) कुसुम की फसल में लगने वाले कीट एवं उनका नियन्त्रण

इस फसल को हानि पहुँचाने वाले प्रमुख कीटों में एफिड (aphid), कैटरपिलर (caterpillar) व मक्खी आदि है ।

इन पर नियन्त्रण के लिये - डाइ मैक्रॉन की 250 मिली. मात्रा या रोगार रसायन की 1 लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करना चाहिये ।


कुसुम की फसल कितने दिन में तैयार हो जाती है?

कुसुम की फसल बुवाई के 130-140 दिनों पश्चात् पककर तैयार हो जाती है ।


कुसुम की फसल से प्राप्त उपज

असिंचित क्षेत्रों में कुसुम फसल की उपज 10-12 क्विटल/हैक्टेयर होती है व सिंचित क्षेत्रों में 14-18 क्विटल/हैक्टेयर तक उपज प्राप्त हो जाती है ।

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