उड़द की उन्नत खेती कैसे करें पूरी जानकारी? | Urad ki kheti kaise kare?

  • उड़द का वानस्पतिक नाम (Botanical Name) - Vigna mungo L.
  • उड़द का कुल (Family) - लेग्यूमिनेसी (Laguminoceae)
  • उड़द में गुणसूत्र संख्या - 2n = 24

भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख दालों की फसलों में उड़द की खेती (urad ki kheti) का महत्वपूर्ण स्थान है ।

उड़द की फसल (urad ki fasal) मुख्यत: खरीफ के मौसम में उगाई जाती है, परंतु उत्तर भारत में उड़द की खेती ग्रीष्म व वर्षा ऋतुओं में भी की जाती है । दक्षिण भारत में उड़द की खेती (urad ki kheti) रबी के मौसम में की जाती है ।


उड़द की दाल (urad ki daal) का उपयोग

उड़द का प्रयोग मुख्यत: दाल के रूप में किया जाता है, उड़द की दाल (urad ki daal) का दैनिक आहार में एक महत्वपूर्ण स्थान है । उड़द की दाल के साबुत दाने को भी दाल बना कर खाया जाता है ।

उड़द की दाल (urad ki daal) में लगभग 22-24% प्रोटीन, 60% कार्बोहाइड्रेट, 15% वसा, लवण 1% तथा शेष जल होता है । 
उड़द व चावल के आटे को मिश्रित कर इडली डोसा बनाया जाता है, जो दक्षिण भारत का एक लोकप्रिय व्यंजन है ।

इसके अलावा उड़द की दाल (urad ki daal) से पापड़, हलवा, इमरती, मंगोड़ी तथा कचरी आदि बनाए जाते हैं यही दाल चाट वह दही-बड़े बनाने में प्रयुक्त होती है ।


उड़द की खेती का महत्व

उड़द की खेती (urad ki kheti) से प्राप्त दाल को भोजन के रूप में उपयोग एवं उसकी फसल अन्य कृषि कार्यों के लिए महत्वपूर्ण होती है ।

उड़द की दाल (urad ki daal) की भूसी दुधारू पशुओं को राशन के रूप में खिलाई जाती है । दलहनी फसलों पौधे हरे चारे व सूखे चारे के रूप में प्रयोग होते हैं इसका सूखा चारा बहुत ही पौष्टिक चारा माना जाता है ।

उड़द की फसल (urad ki fasal) उगाने से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और भूमि से 70 से 80 प्रतिशत किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर संचित होती है ।

उड़द का पौधा हरी खाद के रूप में भी कार्य करता है, इसका पौधा गहरी जड़ों वाला होने के कारण मिट्टी के कणों को परस्पर बांधकर मृदा क्षरण को रोकता है ।


उड़द का उत्पत्ति स्थान एवं इतिहास

प्राचीन ग्रंथों के अध्ययन से पता चलता है, कि उड़द का उत्पत्ति स्थान भारत ही है । यहीं से उड़द की खेती (urad ki kheti) अन्य देशों में फैली है, इसके अतिरिक्त विभिन्न इतिहासकारों एवं विद्वानों का भी यही मत है ।


उड़द का भौगोलिक वितरण

उड़द की खेती (urad ki kheti) एशिया व अफ्रीका महाद्वीपों में की जाती है । उर्द उगाने वाले प्रमुख देशों में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, बर्मा व श्रीलंका आदि हैं ।

भारत में उड़द की खेती लगभग 5 मिलियन हैक्टेयर में की जाती है तथा उड़द का उत्पादन (urad ka utpadhan) लगभग 1 मिलियन टन होता है ।

भारत में उर्द की खेती करने वाले प्रमुख राज्यों में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश तथा पश्चिमी बंगाल आदि हैं । उत्तरप्रदेश में उड़द की खेती (urad ki kheti) प्रमुख रूप से लखनऊ, फैजाबाद, रूहेलखण्ड व झांसी मण्डलों में की जाती है ।


उड़द का वानस्पतिक विवरण

उड़द का पौधा लैग्युमिनोसी (Leguminoceae) परिवार से सम्बन्धित है । यह स्वभाव से एकवर्षीय होता है । इसके पौधे सीधे व फैलकर चलने वाले होते हैं ।

उड़द के पौधे के तने के नीचे वाला भाग प्रायः बैंगनी रंग का होता है । इसी लक्षण के आधार पर इसका पौधा मूंग से भिन्नता रखता है ।

इसकी फलियाँ 3-5 सेमी. तक लम्बी होती है । इसमें गुणसूत्रों की संख्या 2n=24 होती है । उड़द के पौधे की ऊँचाई 30-100 सेमी. तक होती है । पौधों पर लगने वाली पत्तियाँ गहरे हरे रंग की होती हैं ।


उड़द की खेती के लिए उचित जलवायु

उड़द के लिये गर्म व नम जलवायु की आवश्यकता होती है । उत्तरी भारत में उड़द की फसल (urad ki fasal) ग्रीष्म व वर्षा ऋतु में ली जाती है ।

उड़द की खेती भारत में सभी मौसमों में की जाती है । फूल आने के समय वर्षा हो जाने से या खेत में अधिक पानी खड़ा रहने से उपज पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । समुद्रतल से लेकर 1700 मीटर की ऊंचाई वाले स्थानों पर उड़द की खेती सम्भव है ।


उड़द की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

उड़द की खेती सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है । उड़द की खेती (urad ki kheti) के लिये दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है । 

मटियार दोमट भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है । खेत में उचित जल निकास आवश्यक है ।


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उड़द की खेती कैसे करें पूरी जानकारी | urad ki kheti kaise kare?

उर्द की खेती के लिये अपनाये जाने वाली सस्य क्रियाएं निम्नलिखित है -

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उड़द की खेती के लिए उन्नत जातियों का चुनाव

उड़द की ऐसी जातियों का चुनाव करना चाहिये जो कम समय में पकने वाली, सूखे के प्रति सहनशील व पीला मोजैक रोधी हो, साथ ही अधिक उपज देने वाली भी हो ।

उड़द की प्रमुख जातियाँ इस प्रकार हैं -

  • TYPE - 9
  • TYPE - 27
  • पन्त U - 19
  • पन्त U - 30
  • TYPE - 65
  • जवाहर उड़द -2
  • जवाहर उड़द -3
  • बसन्त
  • बहार
  • प्रभाव
  • नरेन्द्र उर्द -1
  • नीलम
  • शारदा
  • नवीन
  • पूसा -1 व कृष्णा आदि हैं ।


उड़द की खेती के लिए भूमि व उसकी तैयारी कैसे करें?

उड़द की खेती (urad ki kheti) के लिये दोमट भूमि सबसे उपयुक्त रहती है । खेत की तैयारी के लिये मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई व तत्पश्चात् दो वार हैरो चलाने से खेत की मिट्टी बुवाई के लिये तैयार हो जाती है ।


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उड़द की खेती कब की जाती है?

उड़द की बुवाई के समय भूमि में पर्याप्त नमी होनी चाहिये ।

उड़द की खेती का समय - बसन्तकालीन फसल की बुवाई फरवरी के अन्तिम सप्ताह से लेकर 20 मार्च तक अवश्य कर देनी चाहिये । वर्षा ऋतु की फसल की बुवाई का समय 15 जून से 10 जौलाई तक उचित रहता है ।


उड़द के बीज का बीजोपचार

उड़द के एक किग्रा० बीज के उपचार के लिये थायराम की 2.5 ग्राम मात्रा को प्रयोग में लाना चाहिये ।


उड़द के बीज का राइजोबियम कल्चर से उपचार

उड़द की फसल (urad ki fasal) यदि खेत में प्रथम बार बोई जा रही है तो बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करके बुवाई करनी चाहिये । इसके लिये 250 ग्राम राइजोबियम कल्चर को 10 किग्रा० बीज की दर से बीज को उपचारित करना चाहिये ।


उड़द की बीज दर कितनी होती है?

ग्रीष्मकालीन उड़द की खेती (urad ki kheti) के लिये 20-25 किग्रा० बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है । वर्षा ऋतु की फसल हेतु बीज दर 12-15 किग्रा. ही पर्याप्त होती है ।


उड़द की बीज की बुवाई की विधि

उड़द की फसल (urad ki fasal) की बुवाई छिटकवाँ पंक्तियों में दोनों प्रकार से की जाती है । पंक्तियों में बुवाई करने से अधिक उपज प्राप्त होती है । पंक्तियों में बुवाई सीड ड्रिल (seed drill) की सहायता से करना उचित रहता है ।


उड़द की खेती में अन्तरण

पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20-25 सेमी ० रखनी चाहिये ।


उड़द की फसल के साथ मिलवां खेती

उड़द की फसल ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास व अरहर आदि की खेती के साथ मिलवां की जा सकती है ।


उड़द में अपनाएं जाने वाले फसल चक्र

उर्द की फसल विभिन्न फसल चक्रों में सम्मिलित की जा सकती है ।

कुछ प्रमुख फसल चक्र इस प्रकार हैं -

  • मक्का - गेहूँ - उर्द (एकवर्षीय)
  • धान - गेहूँ (एकवर्षीय)
  • मक्का - आलू - उर्द (एकवर्षीय)
  • मक्का - तोड़िया - उड़द (एकवर्षीय)


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उड़द की फसल में खाद एवं उर्वरक की मात्रा

उड़द एक दलहनी फसल है । अतः उड़द की खेती (urad ki kheti) लिये नाइट्रोजन की अधिक मात्रा में आवश्यकता नहीं होती है ।

फिर भी प्रारम्भिक स्तर पर 15-20 नाइट्रोजन प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करनी चाहिये । फास्फोरस व पोटाश का प्रयोग भूमि परीक्षण के पश्चात् ही करना चाहिये ।

यदि परीक्षण की सुविधा उपलब्ध न हो तो 50-60 किग्रा. फास्फोरस व 30-40 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिये । बुवाई के समय उर्वरकों को 5-7 सेमी० बीज से नीचे की ओर प्रयोग करना चाहिये ।


उड़द की फसल के लिए आवश्यक सिंचाई

उड़द की फसल (urad ki fasal) के लिये 150-250 मिमी. जल की आवश्यकता होती है ।

खरीफ की फसल के लिये यदि वर्षा समय पर हो रही है तो किसी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती । ग्रीष्मकालीन फसल के लिये 10-15 दिन के अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिये । कुल 4-6 सिंचाइयाँ पर्याप्त होती हैं । पौधों पर फूल आते समय व फलियाँ बनते समय भूमि में पर्याप्त नमी होनी चाहिये ।


उड़द की फसल में खरपतवार नियन्त्रण -

उर्द की फसल में खरपतवारों को नष्ट करने के लिये एक या दो निराई - गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है ।


उड़द में खरपतवार नाशक दवा

बुवाई के 40 दिन पश्चात् बैसालीन (Besalin) की 1 किग्रा० मात्रा 800 से 1000 लीटर जल में घोलकर प्रयोग करनी चाहिये ।


उड़द की फसल की कटाई

जब उर्द के पौधे की फलियाँ काली पड़ जाती हैं तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिये । डण्डों की सहायता से पीट - पीट कर या पशुओं की सहायता से अथवा मशीनों से दाना व भूसा पृथक् कर लिया जाता है ।


उड़द की खेती से प्राप्त उपज

कृषि की उन्नत विधियों को अपनाकर वर्षा ऋतु की फसल से लगभग 12 क्विटल/हैक्टेयर व ग्रीष्मकाल उड़द की फसल (urad ki fasal) से लगभग 10 क्विटल/हैक्टेयर उपज प्राप्त होती है ।


भारत में उड़द की फसल के कम उत्पादन होने के क्या कारण है?

भारत में उड़द की फसल के कम उत्पादन होने के क्या कारण है । भारत में दलहनी फसलों की खेती में उड़द की फसल (urad ki fasal) का महत्वपूर्ण स्थान है ।

परंतु अन्य दालों के उत्पादन की अपेक्षा उड़द का उत्पादन कम है । भारत में उड़द की खेती (urad ki kheti) लगभग 2.5 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्रफल पर की जाती है और उत्पादन लगभग एक मिलियन टन होता है ।


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उड़द की फसल के कम उत्पादन होने के क्या कारण है?

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उड़द की कम उपज होने के निम्न कारण हैं -

( 1 ) कम महत्व की भूमि का चुनाव ( Selection of poor soils ) -

सामान्यतः हमारे देश में उड़द की खेती कमज़ोर भूमियों में की जाती है । इन भूमियों में पोषक तत्वों का अभाव होता है ।


( 2 ) अधिक उपज देने वाली जातियों का अभाव ( Unavailability of high yielding varieties ) -

अन्य देशों की तुलना में हमारे यहाँ की खेती पिछड़ी हुई है । यहाँ पर अधिक उपज देने वाली जातियों का विकास इस स्तर पर नहीं हो पाया है कि विदेशों से की जा सके । उड़द की अधिक उपज देने वाली जातियों के बीजों का न मिलना उत्पादन में एक मुख्य बाधा है ।


( 3 ) अपर्याप्त पौधों की संख्या ( Inadequate plant population ) -

प्रति इकाई क्षेत्रफल में पौधों की कम संख्या होने के कारण उपज कम होती है ।


( 4 ) पादप सुरक्षा उपायों की कमी ( Poor plant protection measures ) -

उड़द की फसल में लगने वाले विभिन्न कीटों एवं बीमारियों की रोकथाम उचित समय पर न करने से उपज कम होती है ।


( 5 ) सिंचाई की सुविधाओं का अभाव ( Unavalability of irrigation facilities ) -

हमारे देश में उड़द की खेती खरीफ के मौसम में की जाती है जो वर्षा पर निर्भर होती है । बसन्त व ग्रीष्मकालीन मौसमों में उड़द की फसल के लिये सिंचाई का पक्का प्रबन्ध आवश्यक है ।


( 6 ) कार्बनिक खेती का अभाव ( Lack of organic farming ) -

हमारे देश में कार्बनिक खेती (organic farming in hindi) के प्रति किसानों का रूझान बढ़ रहा है । स्थाई उत्पादन के लिये कार्बनिक खेती का प्रयोग नितान्त आवश्यक है ।

उपरोक्त बाधाओं को दूर कर हम भारत में उड़द की खेती स्थाई रूप से कर सकते हैं, जिससे अच्छी उपज प्राप्त होती है ।

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